कभी मेरी नज़रें ढूंढती हैं मुझमें खुदको,
कभी ढूंढता हूं खुदको अपनी नजरों में मैं,
कभी उदासी की बादल कभी ग़म की रात,
क्यूं नहीं करता मैं खुशियों की दर्खास्त,
क्या है जो मुसलसल चलता जा रहा,
क्यूं ही मुझे लगता है मैं रुकता जा रहा,
कहीं तो खत्म हो ये चाहने की आस,
कभी तो लगे कि दिल मर चुका आज।— % &-
ये शामें तन्हा आज भी है,
की तेरा इंतजार आज भी है,
कहने को तो तू साथ है हमेशा,
नज़र के सामने तू आज क्यूं नहीं है?
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हो गई मोहब्बत तुझसे हमे कोई गम नहीं,
दिल धड़कता है तेरे नाम से इसका हमे गुमां है।-
इश्क़ की हद मुझे मालूम नहीं,
लेकिन जाना वहां तक है जहां तुम मुकम्मल मिल जाओ।-
दिल की कशिश कुछ बरसों से सूनी है,
पहले जैसे हंसते थे अब वो खुलापन कहां है,
हंसता आज भी हूं, मगर उसमे एक मायूसी है,
कहते हैं हादसे इंसा को बदल देते हैं,
मगर इस कदर.... ये सोचा न था।
वक्त, हालात बदलते रहते हैं,
सभी कहते हैं की अपनी दिल की बातें लोगों से किया करो,
तन्हा महसूस नहीं होता,
कैसे समझाऊं उनको कि मैं दिल की बात तो खुद से भी नहीं करता,
शायद अंदर अंदर घुट कर जीना, यही मेरी अब नई पहचान बन गई है।
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खैर, हादसे इंसा को बदल देते हैं।
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उम्र चौबीस, एक अनसुलझा सा दौर या फिर कह लूं इसे जिन्दगी।
पढ़ाई, नौकरी, समाज और खुद में जूझता हुआ एक इंशा।
एक असमंजस का दौर और कुछ अनछुए से पहलू,
धिरे-धिरे तमाम उलझने, बेचैनियां सब थमी हुई हैं।
सिर्फ़ इक रोज मैं खुद के नजरिये से नहीं जी सकता?
खुदके अनुरुप कुछ भी नहीं कर पाना माथे में उलझनो को प्रवेश देता है।
सबकुछ होकर भी, यह उलझने क्यों?
किसी के चले जाने से? या शायद खुद के चले जाने से?
कल की याद और कल की चिंता में चिता हुआ इंसान।
खुद से कई रंजिशें खुद में कई मलालें, जिसको ना तो मिटा पा रहा ना आगे बढ़ पा रहा।
कोई ना तो सही राह दिखाने वाला ना गलत सही की पहचान बताने वाला,
रो भी तो नहीं पाता, दिल पर एक बडा सा चट्टान लिए चला जा रहा हूं।
ये चट्टान जितना मेरे बाहर है, उससे कई गुणा ज्यादा मेरे भीतर।
इस चट्टान को निकालने की कोशिश भी की तो दिल में एक कतरा नहीं रहेगा खून का,
शायद इस चट्टान और मेरे जिंदगी का एक अटूट सा रिश्ता बन चुका है।
ये चट्टान ही है जिसने अभी तक शायद मुझे जिंदा रखा है।
स्वभाव चिड़चिड़ा सा हो गया है, खुद पर अब संतुलन नहीं रही, बेवजह गुस्सा, बेवजह सूनापन।
मेरे कुछ सवाल हैं मुझसे, जिसके जवाब नहीं हैं मेरे पास,
कोई है जो मेरे सवालों का जवाब दे सकता है?-
छोड़ सारे सपने, आज मैं तेरी हकीकत को सलाम करता हूं,
चल आज चलें कि मैं हवाएं नीलाम करता हूं,
आजा देख यहां कैसी है भीड़ हर मंदिर मस्ज़िद में,
कि आजा आज से मैं फकीरों के दुवाओं को प्रसाद कहता हूं।
तेरी सजदों से ज़्यादा, भगवान, दुयाएं सलाम करता हूं,
चल आज चलें कि मैं हवाएं नीलाम करता हूं।-
आंखों में खो जाना, बाहों में बहक जाना,
तुमसे सीखा है, तुमपे मर जाना।
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तुम सुकूं हो।।-
काश मैं बयां कर पाता तेरी रूहानियत तुझसे,
कि तेरे रुखसार के तिल पर दिल आया है।
काश मैं बयां कर पाता क्या खुशबू है तुझमें,
कि तेरे आगोश में मैंने खुदको मदहोश पाया है।-