हम प्रेम लिखने वाले लोग है
क्या लिखेगे जंग पर
बन्दूक की नोक पर
हम दुश्मन को प्रेम
गीत सुनाएंगे
बावजूद,
अगर गये युद्धभूमि में
हम जैसे लोग
तो हम जंगी जमीन पर
फूल उगाते हुए
बेमौत मारे जाएंगे 🥺🙏-
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सड़क पर चलते हुए
वो मेरे दायें चलने पर
मुझे बाएं खिंचती थी
उसे पता था कि
मुझे नफ़रत है समाज से,
उसके ज़हरीले उसूलों से
मैंने नहीं दिखाया उसे कभी
उसके स्त्री होने का भय
मैंने नहीं पढ़ने दी उसे
वो सारी किताबें
जिनमे लिखे थे
स्त्री होने के नियम
मुझसे नहीं तोड़ा गया कोई दिल
मैंने प्रेम में समाज के नियम तोड़े..🌼💜-
एक एक दिन फिर
सालों जैसे बीत रहे थे
हम चाह कर भी नही
बना पा रहे थे
एक दूसरे की पीठ पर वो नक्शा
जिसमें थे वो तमाम रास्ते
जिनके चौक चौराहों से होते हुए
हम पहुंचते उस नदी के किनारे पर
जहां मकतूब था हमारा मिलना..🌼❤️-
तुम्हे पता है जब तुम होती हो तो तुमसे कितनी ढेर सारी बातें करता हूं ,
वहीं दूसरे ही छड़ तुम्हारे न होने पर उन्ही बातों को पढ़ पढ़ कर मुस्कुराता हूं
तुमसे प्रेम करके मैंने लिखने के साथ ही पढ़ना भी सीखा है
देखो अभी तुम शायद अपनी सूरजमुखी जैसी आखों के साथ
व्यस्त होगी इस दुनिया और उसके रीति रिवाजों में
वहीं मैं हमारे इस इनबॉक्स के बागानों में टहलते हुए
इन क्रांतिकारी बातों को दोहराता जा रहा हूं
कभी कभी मुस्कुरा रहा हूं तुम्हें पढ़ कर
तो वही एकाएक हँसी आ जाती है अपनी बचकानी सी
"प्रेमियों की एक अलग दुनियां बसाने" वाली बात पढ़के ,
मेरा मानना है कि प्रेम की ये अतिश्योक्ति भरी बातें कहीं न कहीं
हमें प्रेम में नृत्य करना सिखाती हैं
अगर बसाई जाएगी एक नई दुनिया
प्रेम और प्रेमियों की तो
मैं वहां तुम्हारा माथा चूम कर जाना चाहूंगा 🌼❤️-
सूखी पातों के संग पतझड़ में
मैं आंगन तुम्हारे आउंगी
तुम झूम उठोगे जब सावन
मैं खुद झूला बन जाउंगी
आएगी जब शीतलहर
मैं गर्म हवा बन जाउंगी
लिखे जो पर भेजे न
वो सारे प्रेम पत्र सुनाऊंगी
संग नृत्य करेंगे हम तुम जब
इस सूर समाज की छाती पर
छनकार मेरे पायल की तब
दुनिया को संगीत सिखाएगी
दुःखो के पेड़ों पर एक दिन
सुख की कोपल खिल जाएगी
आने वाली पीढ़ी भी फिर
खुद प्रेम गीत ही गायेगी
जहाँ ऊंच नीच काला गोरा
सारी बातें बह जाएंगी
जहां ईश्वर होगा तुम जैसा
बिल्कुल
मैं एक ऐसी दुनिया बसाउंगी 🌼❤️-
हम दोनों ही अपनी दुनिया से सताए
दो रोते हुए लोग थे
हमने अपने आंसुओ को
पोछने के बजाय
एक दूसरे की पीठ सहलाना
बेहतर समझा
बर्फीले पहाड़ जैसे हमारे दुःखो पर
हमने प्रेम की छेनी चलाई
फिर उन्ही पहाड़ो पर बैठ कर
हमने प्रेम के गीत गुनगुनाये
हमारे गाये उन गुनगुने गीतों ने
पहाड़ो को पिघला दिया
हमने प्रेम में एक दूसरे की छाती पर
सूरजमुखी उगाए
ताकि आये जब तूफ़ान
उजाड़ने उनकों तब महके
हमारा प्रेम इन मरघटी शहरों में..🌼❤️-
ये सांसे जब अटकने लगेंगी,
जिंदा रह पाना
बेहद मुश्किल काम होगा,
तब..
तब मैं तुम्हें आवाज़ दूंगा..-
इस दुनिया में उस शख़्श का दुख
निश्चित ही सबसे बड़ा रहा होगा
जिसे कभी सुना ही नहीं गया...
इस दुनिया मे उसी शख़्स का प्रेम
सफल हुआ होगा,
जिसने प्रेम में कभी कोई उम्मीद नहीं रखी ।-
जब मैं आऊंगा तो बहुत कुछ लाऊंगा
तुम्हारे लिए...
वो चीजें सिर्फ एक सामान नहीं होगी ..
मैं क्या हूं कैसा हूं उनमें दिखाई देगा
तुम्हें वो सब,
मैं थोड़ा बनारस, थोड़ा लखनऊ और
थोड़ी दिल्ली साथ लाऊंगा,
नैनीताल की मॉल रोड पर
रात 10 बजे अचानक
जिन झुमको पर नजर गई
और फिर
मन ही मन में तुमको याद करते हुए
जो सपना देखा
वो सारे सपनें लाऊँगा
उन झुमको को सालों सहेज कर रखा
इस उम्मीद में कि 'हम मिलेंगे' ..
तो जब आऊंगा मैं
तो सामान के साथ
हमारे मिलने की वो उम्मीद लेके आउंगा..🌼❤️-
एक रोज़ नदी किनारे बैठे,
अपने-अपने पैरों को पानी मे डालकर
एकदूसरे के होठों को चूमते हुए
उस नदी को पाक कर देंगे हम-तुम..
यह बहता हुआ गुलाबी शर्बत
अपने आग़ोश मे आये
इन मरघट जैसे वीरान शहरों में
प्रेम की नई फसलें उगाएगा ..
आने वाली पीढ़ी को हम प्रेम की लहलहाती
फसलें देकर जायेगें 🌼❤️-