जनता की फिकर किसे है,
सब कुर्सी के पीछे है...
चौकीदारों से देश चल रहा,
असल मुद्दे सब स्वार्थ के नीचे है...
हाथ जोड़ के आते हैं सब,
भाई बाप का रिश्ता बनाते हैं...
अपने मन के मैल को,
सफेद कपड़े में छिपाते हैं...
काम की बात करता नहीं कोई,
सब आरोप आरोप है खेल रहे...
कोई 72000 का साल दे रहा,
कोई धर्म कार्ड है खेल रहे...
सब लगे पड़े हैं देने प्रलोभन,
अपनी ज़मीर न खोना तुम...
सही सरकार को चुन लेना वर्ना,
आगे 5 साल फिर रोना तुम...
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