सुना है हवा साफ हो गयी थी पिछली सुबह,
और इस सुबह बेची जा रही बाज़ारों में।
वे महफूज़ थे अपने घर मे सुकून के साथ,
और यहां कफ़न नसीब नहीं हो रही अपनों को।
लोग दफ़न हो जा रहे है बिना कब्र के,
कम पड़ जा रही है लकड़ियां जलने को।
देह को दाह तक नसीब न हुई,
संस्कार भी नहीं जा रहे मिलने को।
क्या रात आई है मिलने अपनों से,
कि सांसे चली जा रही मिनटों में।
अब बचा नहीं कुछ कहने को, कि
वे भूल गए है सपनों को।
काल ये कैसा आया है,
कि काल इसमें समाया है,
वो रात चली जाएगी, पर अपने फिर न आयेंगे,
हम थमते रह जाएंगे, पर समय थम न पायेगा।।....✍️
-