क़िताबों के पन्ने, पलट पलट कर देखता हूँ मग़र..
कोई भी सफ़ा, लिख़ा मेरा, मुझे अपना नहीं लगता !!
घिरा रहता हूँ हर सू लोगों से रात दिन मग़र...
मुझे आजकल मैं ख़ुद भी अपना सा नहीं लगता !!
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उठ जाते हैं महफ़िलों से यों ही,
उनकी बात किये बिना !!
शराब भी आज कल बेवफ़ा,
उनकी तरफ़दारी करती है !!-
कोई ताबीज ऐसा दो कि मैं चालाक हो जाऊं,
बहुत नुकसान देती है मुझे ये सादगी मेरी!!-
अपने ग़मों की कहानी ख़ुद लिखी है मैंने..
बस इसलिये हर ग़म खुशी से जी लेता हूँ मैं।।-
एक बार ज़िंदगी में फिर ठहर जाने को दिल चाहता है ..
जो खो गया था भागदौड़ में, उसी को पाने को दिल चाहता है !!
था दामन में मेरे जब तक, क़दर नहीं थी उस महोब्बत की ..
आज उसी चेहरे के लिए सबकुछ लुटाने को जी चाहता है !!-
तुम हमेशा कहती हो
मुझे कोई बेहतर मिल जायेगी!!
तुम ही मेरे लिए
ज़रा और बेहतर बन जाओ ना!!-
महोब्बत और दर्द का, एक अजीब रिश्ता होता है..
एक कम होता है तो, दूसरा अपने आप बढ़ जाता है।।-
बहुत से लोग हो गए दूर, पिछले कुछ सालों में ...
और हुआ यों के मैं कई लोगों से बहुत दूर हो गया !!-
ख़ुदा का शुक्र कर तुझे मेरी ख़ामोशी तो मिली..
मैं ये तोहफ़ा भी हर किसी को नहीं देता।।-
ज़िंदगी में इतना गहरा अँधेरा है की ...
रातों को भी आजकल मुझे बड़ा उजाला सा लगता है !!-