अंकित दीक्षित   (© अंकित दीक्षित 'अर्ज़')
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My creativity is a sacred gift that opens doors.
Joined 14 February 2018


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ख़्वाब की ताबीर में हम, बस सफ़र करते रहे,
हिज्र की दहशत में देखो, इश्क़ का इक वीर है

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दिल फ़साना, जज़्ब-ए-उल्फ़त, रूह की ताबीर है,
हर नफ़स में शम्स होना, इश्क़ की तासीर है।

नूर-ए-फ़िक्र ओ दर्द-ए-दिल का, सिलसिला तारी रहा,
जंग दो लोगों की थी, और तीसरे का तीर है।

ख़्वाब की ताबीर में हम, बस सफ़र करते रहे,
हिज्र की दहशत में देखो, इश्क़ का इक वीर है।

ज़ेहन की वीरानियों में, गूंजती है इक सदा,
हर ख़ामोशी में छुपी, इक दर्द की जागीर है।

इश्क़ को तौहीन कहकर, हँस पड़े थे जो ये लोग,
आज उनकी रूह में, इक शोर की ज़ंजीर है।

आख़िरी मिसरा यही है, ग़ौर से पढ़ना कभी,
हो ग़ज़ल जिससे शुरू, वो इक हसीं तस्वीर है।

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किस की जीत होती, कौन हार जाता
एक ज़लज़ला जब, सब को मार जाता

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कमरा नहीं रौशन हुआ
जलती है लौ बेकार में

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बुझेगी हल्की प्यास पानियों से पर
शदीद जब भी प्यास हो, तू ख़्वाब देख

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कभी जो दिल उदास हो , तू ख़्वाब देख 
वो जब ना आस-पास हो, तू ख़्वाब देख

बुलाया कर उसे तू अपने ख़्वाब में 
वो दूर हो या पास हो, तू ख़्वाब देख

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जंग होगी, या नहीं होगी, या अब हो के रहेगी
वक़्त गुजरेगा और ये ख़्याल गुज़र जाएगा

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वो जब से मुझसे बिछड़ गई है
मेरी तबीयत बिगड़ गई है

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कुछ हुआ क्या? नहीं, कुछ हुआ ही नहीं..
मेरा तुमसे कोई वास्ता ही नहीं  !!

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मिला नहीं जालिमों को कुछ भी
मेरी तो दुनिया उजड़ गई पर

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