ख़्वाब की ताबीर में हम, बस सफ़र करते रहे,
हिज्र की दहशत में देखो, इश्क़ का इक वीर है-
दिल फ़साना, जज़्ब-ए-उल्फ़त, रूह की ताबीर है,
हर नफ़स में शम्स होना, इश्क़ की तासीर है।
नूर-ए-फ़िक्र ओ दर्द-ए-दिल का, सिलसिला तारी रहा,
जंग दो लोगों की थी, और तीसरे का तीर है।
ख़्वाब की ताबीर में हम, बस सफ़र करते रहे,
हिज्र की दहशत में देखो, इश्क़ का इक वीर है।
ज़ेहन की वीरानियों में, गूंजती है इक सदा,
हर ख़ामोशी में छुपी, इक दर्द की जागीर है।
इश्क़ को तौहीन कहकर, हँस पड़े थे जो ये लोग,
आज उनकी रूह में, इक शोर की ज़ंजीर है।
आख़िरी मिसरा यही है, ग़ौर से पढ़ना कभी,
हो ग़ज़ल जिससे शुरू, वो इक हसीं तस्वीर है।-
कभी जो दिल उदास हो , तू ख़्वाब देख
वो जब ना आस-पास हो, तू ख़्वाब देख
बुलाया कर उसे तू अपने ख़्वाब में
वो दूर हो या पास हो, तू ख़्वाब देख-
जंग होगी, या नहीं होगी, या अब हो के रहेगी
वक़्त गुजरेगा और ये ख़्याल गुज़र जाएगा-
कुछ हुआ क्या? नहीं, कुछ हुआ ही नहीं..
मेरा तुमसे कोई वास्ता ही नहीं !!-