" अश्क "
मैं क्या हुँ , क्या पता
बस झरने सा हुँ
हंसी में , खुसी में, और दुःख में
सच कहता सा हुँ |
जबाँ समझती है दुनियां
पर मैं अपनों की भाषा हुँ ,
मरकर तेरा दिल हल्का करुँ
मैं वो बहती सी आशा हुँ |
तू हँसता है, ये सब देखते है
पर मैं तेरे दिल की कसक हुँ ,
जो तेरी उम्मीद पे बहता है
हाँ मैं वही अश्क हुँ |
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