ankit agarwal   (Ankit Singhal)
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Joined 30 January 2020


Joined 30 January 2020
11 SEP 2024 AT 21:03

पाथर पूजे ही हरी मिले, तो काहे मैं पूजूं पहाड़
घर की चाकी भी हम पूजे, सनातन संस्कृति महान।

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16 DEC 2020 AT 23:34

"उस अनजानी की अनोखी आंखों ने मेरे अश्कों को अपनाकर मुझे अपना बना लिया"

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13 DEC 2020 AT 18:39

करते होंगे लोग अपनी महबूबा के लिए स्टेटस सेट,
हम तो अपनी जान के लिए लाइफ सेट कर रहे हैं।

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30 AUG 2020 AT 23:49

"निखरी वो रात कुछ इस कदर तेरे चेहरे की चांदनी में,
एक पल को हम भूल गए की वो अमावस की रात थी"

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28 AUG 2020 AT 22:00

ये रात

सूरज की तपती किरणों को चीर कर, धरा पर पग पसारती है यह रात।
अक्सर आशिक़ों की आशिकी की, साक्षी भी कहलाती है यह रात।

कुछ अनजाना सा ज़रूर है इसमें, कुछ तो है अपनी सी बात,
इसकी ही चादर ओढ़ के करती, सृष्टि अपने सृजन की शुरुवात।

चाँद की उजली चांदनी, अगणित तारों की क़तार, मायूस उदास कुछ चेहरों को अक्सर एक नई सुबह की ओर ले जाती है ये रात।

इस रात के साये में, मन मेरा मलंग हो जाता है,
इसके तारों के आबशार देख कर ये अक्सर उनमें खो जाता है।

सुहाने सपनो की दुनिया में विचरण हमे कराती है ये रात,
तम के सागर में डूबे जीव को, छोटे एक दीप की एहमियत, सिखलाती है ये रात।

है मोहब्बत की आरजू इसमे, इसमे ही है प्रीत की प्यास,
कोई कहे कुछ भी यारों, हमें तो,
बहुत रास आती है ये रात
बहुत रास आती है ये रात।

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4 JUN 2020 AT 16:52

Original poetry "THE STUPIDITY STREET"

I saw with open eyes
Singing birds sweet
Sold in the shops
For people to eat,
Sold in the shops of
Stupidity Street.
I saw in vision
The worm in the wheat,
And in the shops nothing
For people to eat;
Nothing for sale in
Stupidity Street.

by Ralph Hodgson

"Animal activist hypocrite" version of the same poetry-

I saw with open eyes,
Plates full of meat,
In big social gathering,
Of animal lover hypocrite
Shouting loud of difficulties
Faced by animals on street.

I saw in vision
The animals they eat,
On this planet
Have became extinct,
And now they are eating
The same animals of street.

By Ankit Agarwal

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14 MAY 2020 AT 2:16

"सुना है पोस्ट ऑफिस ने काम करना शुरू कर दिया है, चिट्ठी में भर कर थोड़ा प्यार भेज दो ना।"

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13 MAY 2020 AT 23:45

"आंखों से मुस्कुराना सीख लिया है हमने, होठों पर बिखरी मुस्कान तो मास्क तले दब जाती है"

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12 MAY 2020 AT 23:19

"चोट गतिशीलता की परिचायक है, घर में खड़ी सायकिल में पंक्चर नहीं होते"

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3 MAY 2020 AT 15:46

हर शाम की चाय पर घर में,
ज़िक्र तुम्हारा होता है,
कट जाएंगे ये दूरियों के दिन,
यहां हर कोई तुम्हारे साथ के सपने संजोता है।

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