Ankeet Aanand   (Ankeet aanand)
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Joined 29 May 2017


Joined 29 May 2017
26 AUG 2022 AT 21:22

तुम और मैं
दो एक दूसरे को चाहने वाले लोग
किसी दुनिया को बदलना चाहते हैं

तुम्हें देख लेने मात्र से
मैंने अपनी दृष्टिकोण बदल ली है
दुनिया के प्रति

मेरे प्रति अपशब्द बोलता हुआ व्यक्ति
मुझसे अपेक्षाएं रखे हुए दिखाई देता है।।

- अंकित आनंद

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5 JUN 2022 AT 7:49

मैंने जब भी अपने हाथ को
तुम्हारी तरफ करते हुए बढ़ाया है,
अक्सर मैंने देखा है
तुम्हारे हाथ को पहले से मौजूद वहां,

शायद तुम्हारे हाथ ने
हर बार की तरह इस बार भी
मेरे हाथ बढ़ाने की आहट को
पहचान लिया था,

तुम्हारे हाथ को पकड़ कर मैंने
हर बार बड़ी आसानी से
उस पार तक का सफर तय किया है।।

- अंकित आनंद

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27 MAR 2022 AT 20:56

.....

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11 MAR 2022 AT 17:21

प्रेम की बात
करने वाला व्यक्ति
प्रेम को अपनाता है

और प्रेम को अपनाया हुआ व्यक्ति
समाज से धिक्कारा जाता है।

समाज द्वारा बहिष्कारित व्यक्ति
ईश्वर के साथ हो जाता है।

ईश्वर के साथ रह रहा
व्यक्ति ही प्रेम की बात करता है।।

-अंकित आनंद

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6 MAR 2022 AT 9:47

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1 MAR 2022 AT 19:08

मैं कविता लिखना चाह रहा हूं,
और मैं तुम्हें सोच रहा हूं,

इस दौरान
कई बार
मेरी आंखें नम हो चुकी है।

ये आंसू ही प्रेम है,
मेरा तुम्हारे प्रति।

मैंने कविता में हमेशा से प्रेम लिखा है ,
आज प्रेम में कविता लिख रहा हूं।।

- अंकित आनंद

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20 JAN 2022 AT 18:00

कोई व्यक्ति
जब दुखी व्यक्ति को देखता है

दुखी व्यक्ति
अपने दुख को देखता है

हैरत की बात है
हर एक व्यक्ति दुखी है।।

- अंकित आनंद

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25 MAY 2020 AT 17:13

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पता है ?
जब तुम जा रहे थे,
तब पृथ्वी अपने नियम
के विपरीत जाना चाहती थी।

मैंने तुम्हें रोकने की कोशिश नहीं की,
तुम्हें जाता हुआ देखकर।
जबकि, मुझे रोक लेना चाहिए था।

मैंने देखा ,अपने चारों ओर के पेड़ों को।
मुझे लग रहा था शायद ,
कोई पेड़ आज अपनी जगह से आगे बढ़ेगा
और तुम्हारे हाथ को पकड़ कर
तुम्हें रोक लेगा।।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
मैं भूल गया था ,
कि तुम्हारा रुकना और पेड़ का हिलना
अपनी जगह से
दोनों ही पृथ्वी के नियम
के सख़्त विरुद्ध है।।

-अंकित आनंद

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16 APR 2020 AT 9:37

.
मेरे कमरे की दो खिड़कियां
पहली वो जिससे आ रही है
कमरे में सूर्य की किरणें
टकराती हुई खिड़की पर रखे
गमले के पौधे से ।।

पर कमरे की दूसरी खिड़की
जिसे मैं कभी नहीं खोलता
जिससे कभी रौशनी नहीं आई
ना कोई गमले में लगा पौधा है वहां

जब मैं खोलता हूं उस खिड़की को
वहां से आती है बू मजदूरों की ,
बना हुआ दिखता है पहाड़ सा कचरा
और दिखती है अव्यवस्थित झोपड़ियां वहां से,
वहां की नालियां
जिसे कभी सोचा गया नहीं
वह खुद बना रही है रास्ता
शहर की और नालियों से मिलने की।।

मैं सोच रहा हूं
ये खिड़की मेरे कमरे की है
या इस समाज की।।

-अंकित आनंद ।।

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31 MAR 2020 AT 23:01

ये अन्याय है
एक कवि का
उसके काव्य
के साथ ।।

कवि लिख रहा है
भरपेट भोजन
करने के बाद,

वो कविता
जिसमें कोई
गरीब ,भूखा प्राणी
दो रोटी की भूख से
तड़प कर दम
तोड़ देता है।।

अंकित आनंद


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