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पता है ?
जब तुम जा रहे थे,
तब पृथ्वी अपने नियम
के विपरीत जाना चाहती थी।
मैंने तुम्हें रोकने की कोशिश नहीं की,
तुम्हें जाता हुआ देखकर।
जबकि, मुझे रोक लेना चाहिए था।
मैंने देखा ,अपने चारों ओर के पेड़ों को।
मुझे लग रहा था शायद ,
कोई पेड़ आज अपनी जगह से आगे बढ़ेगा
और तुम्हारे हाथ को पकड़ कर
तुम्हें रोक लेगा।।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
मैं भूल गया था ,
कि तुम्हारा रुकना और पेड़ का हिलना
अपनी जगह से
दोनों ही पृथ्वी के नियम
के सख़्त विरुद्ध है।।
-अंकित आनंद
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