ये बताना कि सब कुछ
" वक्त के साथ संभल जाएगा।-
दर्द तो ज़िंदगी का एक हिस्सा बन चुका है
और कलम उसका साथी।
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'मैं'उसे पाना नहीं चाहती हूं
ना ही उसमें खोना चाहती हूं,
'मैं' बस उसे महसूस करना चाहती हूं
उसके निगाहों में, 'मैं'खुद को देखना चाहती हूं,
'मैं' सिर्फ उसमें ही रहना चाहती हूं ,
"हर शब्द में, 'मैं' उसका नाम लेना चाहती हूं
वो अनजान भले है लोगों के लिए,
पर पहचान ख़ुद में,'मैं'उसका देना चाहती हूं
"हां".
'मैं उसके बारे में मौन रहकर भी
सबकुछ कहना चाहती हूं,
"उसकी हर एक परछाई का उल्लेख
प्रेम से देना चाहती हूं।
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"आंखों से बाते,और आंखों से
मुलाकाते हो जाती हमारी,
"जो भी कुछ कहना है
वो नज़रे हमारी कह जाती,
"क्या हाल है,क्या हालचाल है
ये चेहरे नज़रो से पूछकर बताती
"ना जाने इंतजार
बे सब्र का रहता है ,
"फिर भी सारा जवाब ये
आँखें ही कह जाती।-
प्रेम "अदृश्य"है कान्हा
मात्र, तुम्हारी "बांसुरी की धुन"
से ही महसूस
किया जा सकता हैं।-
"वक़्त का कोई वक़्त नही
कब 'शून्य' से 'शुरुवात' ,
"या फिर 'शुरुवात' से 'शून्य'की ओर
ले जाए।-
बहुत तप करके इन आखों
के आँसुओ को सुखाया है
"अब किसी कारण
इन आँखों को भिगोना नही है।-
"ख्वाहिश " नही बनना मुझे किसी की
बस, उन्हें हम याद है,
सिर्फ इतना ही काफी है "-
"मेरे अश्रु भी तुमसे जुड़े हैं "कान्हा"
क्योंकि, उन अश्रुओ में
तुम्हारे "प्रेम"का भाव है "
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