मिलता गर मौका तो कुछ शिकायतें करती, गर आप यहां होते तो बात ही क्या होती। हार जाती कहीं खुद से ही अगर, तो कंधे पे सिर रखकर खूब रोती, गर आप यहां होते तो बात ही क्या होती, कभी लड़ती,झगड़ती,कभी गुस्सा होती, गर आप यहां होते तो बात ही क्या होती । माना खुशियां हैं बहुत, हर तरफ़ मेरे, मगर आप यहां होते तो बात ही क्या होती।
ना मैं सावन और ना ही कोई झड़ी हूँ अकेली थी पहले भी , तन्हा आज भी खड़ी हूँ संजोए थे कुछ ख्वाब जो पूरे नहीं हुए जाने क्यों आज भी उनके पीछे पड़ी हूँ माना गुजरता गया वक्त और खोते रहे हम पर अपने अस्तित्व के लिए आज भी अड़ी हूँ झूठ समझती है ये सारी दुनिया जिसे वही सच मैं बस दिल में लिए खड़ी हूँ
I see the innocence of you With shyness in your eyes That respect for me The care i feel, conveying your love That genuineness of you And lot of other reasons Enhancing your decency, That really make me to fall for you.
मैं रेत की तरह, पानी की बूंदों सा वो। मेरी सूखी सी ज़िन्दगी में , जैसे स्पर्श प्रेम का। मैं किसी नदी की तरह, किसी झरनें सा वो। मिलता मुझमें, साथ चलने को अंत तक । किसी गिरते सूखे पत्ते सी मैं, थामता मुझे, ज़मी सा वो। दूर किसी ढलती शाम सी मैं और रात की चांदनी सा वो । अमावस्या से, पूर्णिमा तक इस निराकार जीवन को धीरे -धीरे आकार देता वो।
वक्त बेवक्त बिसात बिछाती है ये वही है जो हमें लड़ना सिखाती है कभी उठाती है प्यार से कभी धम्म से गिराती है ये ज़िन्दगी है जनाब हर मोड़ पर कुछ सिखाती है कभी खुशियां बेहिसाब, कभी ग़म ही बस बरसाती है ये वही है जो हमें लड़ना सिखाती है कभी सिसकियों में मुस्कुराना कभी चोट खाके चलना सिखाती है हां ये वही है जो हमें लड़ना सिखाती है ।