Anju Chharia   (अंजु छारिया ’ असीम ’)
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शिक्षिका और लेखिका
Joined 16 September 2019


शिक्षिका और लेखिका
Joined 16 September 2019
2 FEB 2022 AT 22:52

ग़ज़ल

कुछ तो ऐसा ख़ास दिलों में छोडूंगी
इक प्यारा एहसास दिलों में छोडूंगी

जाना भी मुमकिन है पर जाते जाते
फिर मिलने की आस दिलों में छोडूंगी

अफ़सानों में सबसे बेहतर अफ़साने
अपना इक इतिहास दिलों में छोडूंगी

सूरज चांद सितारों जैसा अपना भी
होने का आभास दिलों में छोडूंगी

ग़म को ले कर रोते आज ज़माने में
कुछ पल तो उल्लास दिलों में छोडूंगी

अंजु छारिया 'असीम’
कोलकाता— % &

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20 JAN 2022 AT 18:41

मन हो पवित्र यदि तो कठौती में गंग है।
पूजा से भी ज़रूरी रोटी की जंग है।
आडम्बरों में बँधता हरगिज़ न आदमी,
इंसानियत की जिसके मन में तरंग है।

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7 DEC 2021 AT 19:15

मुस्कुराते हैं जब घाव दिल के मिरे
दर्द के साथ भी खिलखिलाती हूं मैं

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7 DEC 2021 AT 19:10

रेत का आशियाना बनाती हूं मैं
टूट जाता है तो टूट जाती हूं मैं

चल पड़ी जैसे ही मैं तुम्हारी तरफ
रास्ते फिर सभी भूल जाती हूं मैं

मुस्कुराते हैं जब घाव दिल के मिरे
दर्द के साथ भी खिलखिलाती हूं मैं

तुम मनाओगे आकर मुझे आज फिर
बस यही सोचकर रुठ जाती हूं मैं

इश्क़ का फ़लसफ़ा कौन समझा यहाँ
सोचते-सोचते गुनगुनाती हूं मैं

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22 NOV 2021 AT 12:49

पा लिया इश्क़ का फलसफा इस तरह
ख़्वाब मिलकर हसीं हम सजाने लगे

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8 NOV 2021 AT 12:42

किसी से प्यार करने का कोई मौसम नहीं होता
अगर हो जाए तो यारों कभी ये कम नहीं होता

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29 OCT 2021 AT 19:44

दर्द प्यार का मीठा-मीठा प्यारा-प्यारा होता है,
प्रेम दीवानों के दिल का ये एक सहारा होता है।
जिसने प्यार किया ही न हो क्या जाने वो उल्फत को,
मदहोशी का आलम यारों कितना न्यारा होता है।

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18 OCT 2021 AT 22:12

आज इतना बता नाखुदा ये हमें
वो हमारे नहीं क्यों लगा ये हमें

हमको अपनी ख़बर भी नहीं आजकल
प्यार करने लगा लापता ये हमें

क़ामयाबी हमारे क़दम चूम ले
कोई देकर गया है दुआ ये हमें

आसमाँ में उमड़ती घटायें कहें
अब बरसना कहाँ है पता ये हमें

काश होती ज़रा और नज़दीकियां
काटता है बहुत फ़ासला ये हमें

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9 OCT 2021 AT 12:13

महक जाता है कागज भी तुम्हारा नाम लिखते ही
लगता है तेरे अल्फ़ाज़ खुशबू से भरे शायद।

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30 SEP 2021 AT 11:56

कतरा कतरा मोम सी
पिघल रही है ज़िन्दग़ी।
लम्हा - लम्हा शाम सी
ढ़ल रही है ज़न्दगी।
मुट्ठियों में बाँध कर
कोशिशें रखने की कीं ,
रेशा - रेशा रेत सी
फिसल रही है ज़िन्दगी।

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