समय समय की बात है, कभी जीवन सपाट,
सहज समतल मैदान था । मेरे लिए
जिसमें कहीं-कहीं गढ्ढे तो थे ।
मगर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों,
गहरी घाटियों और खंडहरों की उपस्थिति न थी,
जन - सज्जन, की तरह मैं भी
पहाड़ों की सैर शौक़ीन थी,
उतार - चढ़ाव घुमावदार रास्ते
क़दमों से सांसो में जो फूर्ती थी ।
अब जानें कहां आ पहूंची, सपाट जीवन में तंगी
कई रास्ते उलझे से या मैं उल्झी ।
सहज समय की कठीन परीक्षा
चल रही या दे रही ?
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