अंजना प्रजापति   (अंजना प्रजापति)
7 Followers · 3 Following

& / Again
Joined 17 January 2021


& / Again
Joined 17 January 2021

देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं 
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं 
धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं 
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुएं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं 

मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी 
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी 
धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं 
हाय ! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं 

कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं 
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं 
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी 
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी 

पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो 
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो 
मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ 
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ 

चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो 
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो

-



सीखने की चाहत,
आस से उम्मीद-उम्मीद से विश्वास
समझ बढ़ने से,
खुशी से जिज्ञासा-जिज्ञासा से जिज्ञासु
आगे सीखने की,
मन कहता कर भरोसा-भरोसा खुद पर
होगा कैसे स्वंय मालूम,
बस कर प्रयास-प्रयास प्रश्न से
आज़ बस आज़ से,
सुलझा ले समय-समय पर चिन्हों को
चलती रहे,
सीखने की चाहत।

-



मेरे जीवन के कृष्ण सारथी बने रहना,
हे नाथ तुम्हारी अगुआई में मेरा सफ़र है सारा
अपने चरणों में स्थान बनाएं रखना
तुम्हारे मार्गदर्शन से चलता हर दिन मेरा
ऐसी कृपा बनाएं रखना
यू कहूं कि कब जरूरत नहीं होती तुम्हारी
मेरे जीवन के कृष्ण सारथी बने रहना।

-



मन बहुत परेशान है, दिल जो उदास है,
ख़ुद से खो गए हैं, अपने सवालों के पास हैं हम।

चुपचाप रात के अंधेरे में, दिल खोज रहा है,
सितारों की तरह जब खो गए हैं, आसमानों से दूर हम।

मन की उलझनों को समझकर, खुद को समेट लेना है कठिन,
मन बहुत परेशान है, दिल जो उदास है

-



समय समय की बात है, कभी जीवन सपाट,
सहज समतल मैदान था । मेरे लिए
जिसमें कहीं-कहीं गढ्ढे तो थे ।
मगर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों,
गहरी घाटियों और खंडहरों की उपस्थिति न थी,
जन - सज्जन, की तरह मैं भी
पहाड़ों की सैर शौक़ीन थी,
उतार - चढ़ाव घुमावदार रास्ते
क़दमों से सांसो में जो फूर्ती थी ।
अब जानें कहां आ पहूंची, सपाट जीवन में तंगी
कई रास्ते उलझे से या मैं उल्झी ।
सहज समय की कठीन परीक्षा
चल रही या दे रही ?

-



धीरे-धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय.....

-



अहंकार में कोई सार नहीं.......

-



मीलों मील कदमों का क़ोई अंत नहीं
कदम डगमगाये तो क़ोई आश्चर्य नहीं
समतल रास्तो पर सफ़र का मज़ा कहा होगा
भटकते-ढनकते, संभलते
कंकड़ के चुभन का जो मज़ा होगा
दूर कहीं क्षितिज सा,
रास्ता जाता है......।

-



ठहरो क्षण भर प्रतीक्षा तो कर लो,
सोच तो लो आगे की बात
विचारो-अपवादों की जो लूह चलीं,
मूर्छा जाएगा मन कोना
सिचा रहा सदा जिसका स्नेह से,
मन का कोना-कोना
घात-प्रतिघात सहे कैसे-कैसे,
व्याकुलता के पलने में झूले
कितने रैना,
रह जाएगी चिर-परिचित से भ्रांति
में लीन रहे दो नैना
ठहरो क्षण भर प्रतीक्षा तो कर लो,
सोच तो लो आगे की बात....।

-



मैं मौन मन में हलचल,
कहने को बहुत कुछ
पर मैं निशब्द,
मन से मांगती हूँ, सुकून के कुछ पल....।

-


Fetching अंजना प्रजापति Quotes