अंजलि   (-✍️ अंजलि)
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Joined 2 April 2020


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15 SEP AT 22:49

क्या हालात क्या जज़्बात?
लफ्जों के मायने क्या?
सब आँखों को कहने दो।

मत दो जहमत दिमाग़ को
कहे का मतलब निकलने की...
बदलते हर पल में बातें नयी
ख़ुद को समझते रहने दो।

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15 SEP AT 17:51

ओ हमदम! संग तेरे मैं सुकूँ के उस सफ़र पर हूँ....
कि मंज़िल तू ही है चाहे मैं किसी भी डगर पर हूँ....

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15 SEP AT 17:41

चमक सूरज की मध्यम है....
तेरे मुस्कान के आगे
असर मरहम का भी कम है.....
तेरे मुस्कान के आगे
सुलझती लागे उलझन है....
तेरी मुस्कान के आगे
जहाँ के फीके सभी ग़म है....
तेरे मुस्कान के आगे
तुम्ही तुम हो... कहाँ हम हैं....

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11 SEP AT 18:16

वो जतन जो खुशी को
ढूंढ़ लेता हर हालात में.....
वो लगन जो विश्वास दिलाए
सब ठीक होने के बात में...

थोड़ा ध्यान जो जाए
सकारात्मक विचारों पर ज्यादा....
थोड़ा-सा सौहार्द जो दे
सबसे संयमित व्यवहार का इरादा.....

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8 SEP AT 16:03

हे कृष्णा! तुम जरूर आना।
नदी तट पर वंशी बजाना
ग्वाल बाल संग रास रचाना।
हे कृष्णा! तुम जरूर आना....

आडम्बर, छल, कपट वालों को
पूर्ण-ब्रह्म का मार्ग दिखाना।
औरों में उलझें मानुष को
निज-कर्तव्य बोध करवाना.....

कंश से परिजन जो बहुतेरे
उनको आके सबक सीखना।
हो तुम धर्म के संग सदा ही-
ये विश्वास अमर कर जाना।
हे कृष्णा।! तुम जरूर आना.....

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25 AUG AT 10:18

कुछ जता के हक़ मांग ले ख्वाहिशों के पल....
जिसमें यादें शामिल हो अनगिनत बीते सफर की....
कभी कुछ ऐसे भी सफ़र पे ख़ुद संग चल।

खूबसूरत नज़ारे कुदरत के बिखरे हैं हर ओर
महसूस कर सुकूँ उनको आँखों में समेट कर।
हर रंग भर बना दे एक तस्वीर इंद्राधनुषी....
मुस्कुरा दे जिंदगी भी जिसे देख कर।

बस मंजिल ही नहीं रखता मायने -2
ज़रा सफ़र और साथी पे भी गौर फरमाना।
यारी जिंदगी से बेमिसाल हो जाएगी
जो तुम सीख लो उसे उस-सा ही अपनाना।।

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22 AUG AT 12:39

कुछ
सच अच्छे।
कुछ भरम अच्छे।
तुम तुम ख़ूब हो....
तो हम भी हम अच्छे......

जब
खेलती शतरंज
की बाजी जिंदगी....
पता चलता कि माहिर
खिलाड़ी भी हैं कितने कच्चे....

आईने
निहारते रहे....
और इतराते रहे।
झाँक के एक दफ़ा.....
दिल में कहो हैं हम सच्चे....

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29 DEC 2024 AT 17:55

कौन तुम और कौन मैं?
क्या, क्यों और कैसे हैं?
सवाल में उलझे जीवन के
अंत में सब बस शून्य हैं।

क्रोध, लोभ, मोह, माया
जिसमें पूरा जीवन बिताया।
इन सब का 'अर्थ' नहीं कुछ
सब पंच - तत्व में समाया।

जो रहता शेष वो तो केवल
मानवता और नेक कर्म है।
यही जीवन का भाव और
शायद यही जीवन का मर्म है।

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11 DEC 2024 AT 23:44

कैद मत कर
ख़ुद की
खूबियों को
ख्याली दायरे बनाकर ।

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29 NOV 2024 AT 14:13

यदि रामायण कलियुग में होता तो??????

दशरथ के मृत्यु के लिए भरत केकई को नहीं
बल्कि राम को ही दोष देते.....

चरण पादुका तो दूर वापस आने पर भी वनवास से
बड़े भाई को वो अपमानित करते...

बड़ा बेटा बड़ा हो जाता छोटे के जन्म होते ही...
लेता ख़ुद के साथ सदा छोटे की जिम्मेदारी भी।

पर जब बड़ा होता छोटा तो भूल जाता वो स्नेह सभी...
उसे दिखानी होती है बड़बोली सोच और कृत्य अपनी।

पर समय चक्र न्याय करता है एक दिन सबके कर्मों की....
फल से पता चल जाता है कौन, कब और कितना सही।

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