किसने दी संसार को ये मंत्रणा,
के अथाह प्रेम के बदले,
लौटाई जाती है अथाह पीड़ा..
समूचे ह्रदय के बदले,
लौटाए जातें हैं खंडित अंश..
और आलिंगन के बदले,
लौटाए जातें हैं ह्रदय पर प्रहार..
पूरी रचना अनुशीर्षक में..-
तुम्हारी हथेलियों को
ढक सके मेरी हथेलियां,
प्रेम ने चाहा हमेशा,
बस इतना सा स्पर्श..!!-
कभी-कभी चाहे कुछ भी कर लो,
कितना भी जोर लगा लो,
कितनी भी दुआएं कर लो,
कोई नहीं मिलता तो नहीं मिलता।
हर नदी को समंदर नहीं मिलता।।
किसी की किस्मत में शायद सूख,
जाना ही लिखा है।
जीत के एकदम करीब पहुंचकर,
हार जाना ही लिखा है।।
शेष अनुशीर्षक में...-
चंद महीने शेष रह गए हैं,
तेरी मेरी मोहब्ब्त के...
चंद महीनों में,
मिल जाएगी,
किसी को,
ज़िंदगी मेरी।।-
वो स्त्रियां,
जो जानती थी,
रिश्ते का भविष्य..
सफ़र की नींव,
जो एक कड़वे
सच पर रखी गई थी..
समझते हुए कि,
वो स्थान ना पा सकेंगी..
उनके प्रियतम के जीवन में...
परंतु झोंक दिया स्वयं को,
उम्मीद की लौ पर...
बिता दी इंतेज़ार में,
एक हँसती खेलती उम्र,
ख़ुशी - ख़ुशी.....
(पूरी रचना अनुशीर्षक में)-
आखिर वो दिन आ ही गया,
अगली पेशी की घड़ियां ले आया।
राजा का क्रोध फ़िर शांत हुआ,
रानी के मन को भी आराम हुआ।
बीते पलों को फिर दोहराया,
पुराना प्रेम वापस लौट आया।
क्रोध और प्रेम दोनों हुए मौन,
वक्त की गर्त में जा कर पहचाना,
के हम दोनों थे कौन?
शेष अनुशीर्षक में...-
फ़िर एक दिन ऐसा आता है,
जब हमें पता चलता हैं कि
पन्ने को पलटना..दुनिया का सबसे
खूबसूरत एहसास हैं...
क्यूंकि इस बात का इल्म हमें
वक्त गुजर जाने के बाद होता हैं,
के,जिस पन्ने पर हम कभी अटके हुए थे,
दरअसल उसके अलावा भी,
किताब में बहुत सारे किरदार थे..
खूब सारी कहानियां थीं..
वक्त के साथ आगे बढ़ जानें
का ये एहसास बयां करता हैं...
के वो छोड़ गये अकेला,इस जहाँ में हमें...
ऐ जिंदगी! अब तेरा यहाँ,कोई काम नहीं..
जो दिल धड़कता था मोह्हबत में,
अब नहीं धड़कता..
ऐ इश्क़! अब हम तेरे, गुलाम नहीं...-
बड़ी शिद्दत से जिया था हर लम्हा,तेरे साथ...
यूं ही खूबसूरत नहीं लगती,तेरी यादें..
और ये जो बार बार कहते हैं..
कि तुम्हें भूल गए हैं...
ये इस बात का सुबूत है,
कि हर पल तुम्हें ही याद किया है..
तुम्हारी यादें कुछ यूं समाई हैं मुझमें ,
मानो शरीर में आत्मा का निवास..
जिन्हें भूलकर भी भूल ना सके..
तुम्हारी मेरी वो स्मृतियां,
जो अजर है,अमर हैं,
यादों की एक,अनमोल दुनिया मेरी,
तुम्हीं में समाहित है..
इसलिए बस तुम याद हो,तुम याद आते हो,
तुम यादों में रहोगे सदैव,
हृदय में बहती ,रक्तधारा के समान....❤️❤️-
एक समय के पश्चात,
जब महसूस हो जाए...
किसी के जीवन में,
तुम्हारे अस्तित्व का,
शून्य हो जाना.....
तब ले लेनी चाहिए विदा,
आत्मसम्मान शून्य होने से,
ठीक पहले...।।-
मन, मस्तिष्क और अंतरात्मा का विवाद..
और इसी तरह समाप्त हो गया
मोहब्बतों का दौर,
अलविदा कह दिया गया,
समस्त प्रेम पूर्ण भावनाओं को...
स्वयं की कहानी में बेवफ़ा बन बैठे...
और अंततः अंत कर दिया....
अपनी प्रतिक्षाओं का.....प्रेम का.....
समर्पण का....प्राथमिकताओं का....
और उसके अस्तित्व का....
पूरी रचना अनुशीर्षक में..-