"जन्म देने वाली मां से पालने वाली मां बड़ी होती है"
बचपन से ही ये सुनते पढ़ते आए हैं। कृष्ण की कथाओं में भी इसका वर्णन है। हालांकि निजी तौर पर मैं इस तरह मां का विश्लेषण करना उचित नहीं समझती क्यूंकि मेरा मानना है कि मां मां होती है फिर चाहे वो जन्म देने वाली हो अथवा पालने वाली। परन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि जिसने कोख में ना रखकर, गोद में लिया हो उस मां को नमन है उसके ममत्व को नमन है।
यह सब विचार उत्पन्न होने का कारण यह है कि कल ही हमारी सोसाइटी में एक कपल ने बेटी को गोद लिया और बड़ी धूमधाम के साथ घर लेकर आए। मैं पहले इस तथ्य से अनभिज्ञ थी कि बच्चा गोद लिया हुआ है लेकिन जब मुझे पता चला तो मेरे अंदर खुशी और संतुष्टि की लहर दौड़ गई। खुशी इस बात की थी एक बच्चे को परिवार और कपल को उनकी दुनिया मिल गई और संतुष्टि इस बात की कि समाज के एक तबके में जहां आज भी ऐसी छोटी मानसिकता व्याप्त है जहां सोचते हैं गोद नहीं लेना,पता नहीं किसका बच्चा होगा,कौनसी जाति कौनसा खून होगा और भी बहुत कुछ,वहां ऐसे भी लोग हैं जो इस सब से ऊपर उठकर सोचते हैं और धीरे धीरे लोगों की सोच में व्यापकता आ रही है।
संकीर्ण मानसिकता केवल संकीर्णता ही ला सकती है। समाज एवं स्वयं का विकास करना है तो कुरीतियों, कुविचारों को त्यागना होगा।
मेरा शत शत नमन है ऐसे माता पिता एवं उनके परिवार को जो किसी अनाथ का जीवन संवार रहे हैं।
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