मैं शून्य हूं , अनंत हूं
मैं भावना का अंत हूं
हूं पक्ष भी , विपक्ष भी
मैं देह से तटस्थ भी ।।-
काफ़ी नहीं?
यूं इश्क़ में किसी खास का होना लाज़मी नहीं
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तुम "साधारण" हो ,
क्या ये वजह काफ़ी नहीं ?-
मैं जो कहूं मुझे वो देखा करना
कयोंकि
मैं जो हूं वो तुमसे देखा ना जाएगा।।-
मैं जो हूं
मैं खुद को झूठी सी लगती हूं
मछली हूं
पर पानी से रूठी लगती हूं
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और इश्क़ के रंगों से मेरा वास्ता कहां है
मैं लाल हूं
लाल छीटें खून की सी लगती हूं।।।-
कि सदियों का भटका मुसाफ़िर हूं
अब कोई ठौर ठिकाना चाहता हूं
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और
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कह सकूं मैं घर जिसे
एक ऐसा मकां चाहता हूं !!!!!!!-
मेरे भीतर का शोर
मेरे मौन का ज़िक्र कर बैठा
आज फ़िर मैं एक
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एक अनसुलझी कढ़ी से उलझ बैठा।।-
हर जागती रात
और हर त्याग का हिसाब देगा
जब वो ख़ुदा देगा
तुम्हें
तुम्हारे सपनों का जहां देगा ।।-
यूं ही नहींं लगते क़िस्मत में सितारे
ख्वाईश हीरे की हो
तो
पहले जौहरी बनना पड़ता है।।।-
जहां हैं वहां का मज़ा लेते रहेंगे
तो
जहां पहुंचना चाहते हैं
वहां कैसे पहुचेंगे ।।।-
बारिश की पहली बूंद का मेरे गालों पर गिरना
जैसे भीगी सी घास पर नंगे पैर चलना
किसी नई किताब की महक मेरे ज़हन में उतरना
जैसे तेरा मुझसे हाल - ए - दिल कहना
बेशक , ये सभी एहसास हैं उम्दा
अब और क्या कहूं
दिल से कहते नहीं बनता।।
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