मुझे कभी वेदना में देख, रो देती थी मुझसे ज़्यादा उसकी आँखें..
जो मिले कभी छोटी सी भी ख़ुशी मुझे, चेहरे पे उसके प्यारी सी मुस्कुराहट थी छा जाती..!
जो कभी समझ ना पाती मैं ये दुनियादारी, मेरी माँ मेरी मार्गदर्शिका थी बन जाती,
मुझे कभी करनी हो साझा कुछ बातें तो मेरी माँ ही मेरी सहेली थी बन जाती..।
ना जाने माँ कैसे बीत गए,ये वर्ष दो बिना तुम्हारे..
शायद तुम्हारी सिखाई हिम्मत और धैर्य ने ही अब तक रखा है मुझे संभाले..!
मुझे कभी जब लग जाए चोट, बढ़ जाती थी मुझसे ज़्यादा उसकी धड़कन..
जो मिले कभी छोटी सी भी शाबाशी मुझे, हृदय में उसके गर्व की भावना थी भर जाती..!
जो कभी भयभीत हो जाऊँ मैं, मेरी माँ मेरी रक्षक थी बन जाती,
मुझे कभी करे मन अगर खेलने को कुछ तो मेरी माँ संग मेरे बच्ची भी थी बन जाती..।
ना जाने माँ कैसे बीत गए ये वर्ष दो बिना तुम्हारे..
शायद तुम्हारी यादों और एहसास ने ही अब तक रखा है मुझे समेटे..!
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