मैं, मुंबईकर । (भाग 1)
कैसे छोड़कर जाऊ ये मुंबई मैं?
जिसने चलना सिखाया, गिरना सिखाया,
गिरते गिरते दौड़ना सिखाया । 1
महमान भगवान समान तो सब कहते हैं,
पर ये किसी और से क्यू सींखती मैं?
जब खुद केरल से आएँ मुझे
मुंबई ने महमान नहीं, परिवार बनाया । 2
विद्या दी, कला दी, प्रतिष्ठा दी,
इन्सानियत का पाठ पड़ाया
जिंदगी में कभी हार न मानू इसलिए
रोते हुए भी हँसना सिखाया । 3
Continued ...
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