मैंने रखें है कुछ मटके खरीद के...
जिसे हर सुबह एक नई उम्मीद से भरती हूं
.....फिर हर रात उसे तोड़ कर फेंक देती हूं-
कभी भी कोई संबंध बराबरी का होता ही नहीं है
कही कोई दबता है कही कोई दबाता है-
ऐ गली तू चल
कही दूर किसी शहर
मैं भी तेरे पीछे भागती
कहीं खत्म न हो ये सफर-
रास्ते मुश्किल सफर अनजान लग रहे है
मंजिल की खबर नहीं
सपने मेरे, वीरान शमशान लग रहे है-
जाओ रहने दो अकेले
जिंदा या मुर्दा
जब दिखता नहीं दर्द अभी
तो मरने के बाद क्या रोना-
मैं जितना लगना चाहती थी सीने से
मुझे उतनी ही पीठ दिखाई गई
मैं जितना तड़पती थी प्रेम को
उतना ही और तड़पाई गई
चाहती थी कोई हाथ थामे,
यूं ही बेवजह बाहों में भर ले
मैंने हाथ पकड़ा तो
पकड़ कमजोर बनाई गई
मैं जितना तड़पती थी प्रेम को
उतना ही और तड़पाई गई
ख्वाहिश थी माथे के चूमे जाने की
कोई खेले मेरी भी उंगलियों से
और जुल्फों के सवारे जाने की
बस बात थी जिंदगी बिताने की
पर मैं जितना तड़पती थी प्रेम को
उतना ही और तड़पाई गई-
तुम्हारी गलतियां ही तो खूबसूरती है तुम्हारी लिखावट की
फिर कैसे मैं तुम्हें रोक दूं ये गलतियां करने से-
जब उस एक शख्स को ही आप की आवाज़ सुनने का मन न हो
जिसे देख कर, सुन कर, महसूस कर...आप चहक उठते हो
फिर तो जनाब अब चुप रहना ही बेहतर होगा-
सारा मसला ही खुशी की उम्मीद रखने का है
कोई दुख में जीना सीख ले तो तकलीफ कम हो जाए-
मैंने तुमको जीत के सब कुछ जीत लिया था
वरना मैं तो हमेशा से हारी हुई थी-