Anjali kaushik   (Anjali kaushik✍️🇮🇳)
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Joined 14 July 2017


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9 NOV 2024 AT 17:52

ये जो मर रहा है मुझमें, वो मैं ही हूं,
यदा कदा सर्वदा जो भिड़ रहा है मुझसे, वो मैं ही हूं।।

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9 SEP 2022 AT 15:31

हर रोज़ एक ख़्वाब जरूरी है
ख्वाब में तेरी पहचान ज़रूरी है
वो ख़्वाब जो सबसे उपर उठकर
तुझे ज़िंदा रखे है
जमीं से अर्श तक सब तेरा है
बस मानने के लिए एक रात जरूरी है

हर रोज एक ख्वाब जरूरी है
उस ख़्वाब में तेरा दीदार जरूरी है
ये वही ख़्वाब है जो तुझमें मुझे ज़िंदा रखे है
फर्श हो या अर्श मै तेरा हूं
बस मानने के लिए रात ज़रूरी है

हर रोज़ एक ख़्वाब जरूरी है
स्वप्न में ही सही तू ओरों का नहीं बस मेरा है
अब यही तो बस विश्वास जरूरी है
मुझे कभी प्रतीत नहीं होती
ये जो बेवजह मीलों की दूरी है
बस मानने के लिए एहसास जरूरी है
हर रोज़ एक ख़्वाब ज़रूरी है

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13 MAY 2020 AT 22:03

पूछना था 🤔सब स्वदेशी स्वदेशी चिल्ला रहें हैं
माता पिता पर भी ये लागू है क्या🤔
मुझे राहुल गांधी की चिंता हो गई एकदम से😛😛😛😛


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24 NOV 2020 AT 17:50

नित जीवन के संघर्षों में बस याद आपकी आती है
यूं तो मैं बढ़ती जाती हूं, पर घर आने पर जब कोई
हर्ष नहीं दर्शाता है, तब याद आपकी आती है,,
जाने क्या क्या खूबी थी,तिल तिल अब सामने आती है
पापा आपकी रिक्ति मुझको अब बड़ा सताती है
घर से जाना , जाकर आना यूं तो है कुछ भी खास नहीं
पर अब साथ न जाने पर अश्रूधारा बह आती है
एकाकी पथ पर चलती हूं तब याद आपकी आती है
मुझे विदा करने के बदले,आप विदा खुद हो चले
अनंत पीड़ा की ये चर्चा मुझको हिला कर जाती है
नित जीवन के संघर्षों में बस याद आपकी आती है

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2 OCT 2020 AT 12:17

वो पिता जो आसमां था अपने घर का
आज स्वयं मिलके खुदा से आसमानी बन गए हैं
बेटी को उंगली पकड़कर चलना उसको क्यों सिखाया?
फिर क्यों उसको रास्ते में लड़खड़ाता छोड़ आए?
वो जो सीधी सी डगर थी, टेढ़ी मेढ़ी कर गए हैं
खुद स्वयं मिलके खुदा से आसमानी बन गए हैं

मां वो जिसके हाथों से तुम रंग हजारों छीन लाए
जीने मरने की वो कसमें आप झूठी कर गए हैं
उनकी खुशियों का वो दामन, क्यों दुखो से भर गए हैं
वो जो पूरी गृहस्थी थी अब क्यों अधूरी कर गए है?
खुद स्वयं मिलके खुदा से आसमानी बन गए हैं

पुत्र जो की लाडला था कैसे उसको छोड़ पाए
उसके नाज़ुक से करों पर ज़िम्मेदारी धर गए हैं
चंचली आंखों में उसके अश्रु धारा भर गए हैं
वो जो आंखों की चमक थी धुंधला सा कर गए हैं
खुद स्वयं मिलके खुदा से आसमानी बन गए हैं

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20 AUG 2020 AT 17:32

"वो जिसने मुझे सबकुछ सिखाया, पर अपने बिना जीना नहीं सिखाया..मेरे पिता"

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24 JUL 2020 AT 18:20

गोदी उनकी मुझे पुकारे
नैना पल पल राह निहारे
मुझसे किनारा करके अब तुम
छोड़ गए हो किसके सहारे?

मैं किसकी लाडली कहलाऊं
किसके सपनों पर जी जाऊं
पापा तुम बिन मेरे नैना
बरस रहें है अब दिन रैना..

कोई नहीं है तुम बिन पापा
किसपर अपना हक दिखाऊं?
किसकी छाया में रहकर मैं
खुदको को अब महफूज़ कहाऊं?

तुम बिन कौन कहेगा पापा
मुझको अपना 'शेर बेटा'
गुस्सा भी मैं होना चाहूं
तो कैसे हो जाऊं पापा?
नहीं आओगे कभी मनाने
खुदको कैसे समझाऊं पापा?


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17 JUN 2020 AT 21:03

जलती हुई रूई ने दिए से कहा: मेरी मौत के जिम्मेदार केवल ये तेल और अग्नि नहीं हैं
तुम जो मूक दर्शक बनें इन्हे सहारा देते हो और खुद सहनशीलता के प्रतीक बनते हो,तुम भी बराबर के दोषी हो मेरी शहादत में!

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1 JUN 2020 AT 12:43

कोई नहीं है किसी का बंदे,किस वहम ने तुझको घेरा है?
लाखों की इस भीड़ में यारा! हर इंसान अकेला है..

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29 MAY 2020 AT 9:34

समय की कठोरता ही मिट्टी के मुलायम छोटे कणों को चट्टान सा सख्त और विशाल बनने पर मजबूर करती है

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