मृगमरीचिका सदृश प्रेम प्रीत
मोही मैं निर्मोही मीत-
तू दरिया बे-किनारा
मैं तुझमें ही डूबा सा
लत, हालत, लायक, लियाक़त, मय ओ रिंद
क्या ख़ूब बहानें तेरे,
तेरे बहानों में ज़िंदा हूँ, मैं ख़्वाबों में ज़िंदा हूँ-
जब चरमरा सा गया
वो मीठी स्मृतियों का पुल
किसी विचित्र धुंध में
धुंधलाने लगा
तुम्हारे लिये
मेरा वो प्रेम
जब बहकने लगी मैं
संसार के भ्रमित
प्रणय निवेदन में
तब लिख दिया मैंने
तुमको ख़ुद पर
ताकि सुरक्षित रहे
वो लिखावट
जो अनंत प्रेम में
लिखा था तुमने कभी
मेरी आत्मा पर
स्मरण रहे मुझे
वो मीठी स्मृतियाँ
जीवित रहे मेरा प्रेम
जीवन के कैनवास पर
चमकते रहें वो रंग सदा
जिनसे रंगा था तुमने कभी
मेरा ये उजला जीवन
_अञ्जलि-
ये ताना देने वाले रोटी क्यों नहीं देते?
रूप निहारकर राय बनाने वाले
कपड़े जूते क्यों नहीं बनाते?
बनाकर मुफ़्त देते तो अपनी कर्मठता से
लोगों की कुरूपता किनारे लगा देते
फ़क़त राय नहीं बनाते
मज़ाक मस्ती ठीक है
पर ये बात–बात पर चमकाने वाले
घर के खिड़की दरवाज़े क्यों नहीं चमकाते?
सही चीज़ चमकाते तो सराहे जाते
आलोचक अल्हड़ हो तो
आलोचना अपमान हो जाती है
कोई संपन्नता के सहारे बादाम हुआ
कोई बेबसी के बंजर में बबूल
नीचा दिखाने वालों ने क्या नीचे ज़मीन नहीं देखी?
ये तबीअत से इज़्ज़त धोने वाले
अमूमन मन का मैल क्यों नहीं धोते?
_अञ्जलि
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कितनी असभ्य होती है
श्रृंगार से वीभत्स तक की यात्रा
कितना दुर्भाग्य हो जाता है
इस यात्रा का यात्री हो जाना
कितना कटु होता है
नायक से खलनायक हो जाना
प्रेयसी का घृणित और मित्र का अमित्र हो जाना
क्षणभंगुर होता है स्पर्श
नीरस हो जाता है सानिध्य
मिथ्या होते हैं भाव
मृगतृष्णा हो जाती है भावना
कितना किंचित होता है प्रेम
कितना कुरूप हो जाता है विच्छेद
_अञ्जलि
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दुर्गुण
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अपनी परिपक्वता को
किसी के बचपने से नापना
परिपक्वता का नाश है
बलिष्ट होकर मन के किसी कोने में
किसी कमज़ोर का हास्य
बलिष्टता का अंत है
मृदुभाषी का कर्कशा से खीझ
मृदुता का तिरस्कार है
सौंदर्य प्राप्त देवी की पृष्ठभूमि में
कुरूपता से घृणा ही प्रबल है
यह सौंदर्यता की पराजय है
प्रेम करने वाला गूढ़ ईर्ष्या भी करे
तो प्रेम वाष्पित हो चुका होता है
ईर्ष्या की निष्ठुर निदाघ में
दुर्गुणों को अपमानित कर
सद्गुण आगे सद्गुण नहीं रह जाते
वे दुर्गुणों से अधिक दुर्गुण हो जाते हैं।
_अञ्जलि
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एजेंडा
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हम बदल देंगे सरकारी आँकड़े
नकार देंगे वैश्विक प्रतिवेदन
छिपा देंगे तीव्र भुखमरी
ज़मीन में ही दफ़ना देंगे ज़मीनी हकीकत
हाँ कर लिया है पड़ोसियों ने
फ़कत अपनी भूख की व्यवस्था
अभी नज़रअंदाज़ करेंगें हम
अपनी पंगु आवाम की अवस्था
मजहबों का मुद्दा उठायेंगें
और एक बार फ़िर सरकार कहलायेंगें
अर्थतंत्र को सबल क्या ही करना
हम अमीर को.... और अमीर बनायेंगे
और बस यूँही जीडीपी बढ़ायेंगे
उधर व्यस्त होगी गोदी मीडिया
हीरो हिरोइन और हिजाब में
इधर ओढ़ा देंगे हम
मणीपुर की नग्नता को राजनीति का चोला
हम उतारेंगे चांद पर छै सौ करोड़ का चंद्रयान
और भूल जायेंगे करोड़ो कुपोषितों को
भूल जायेंगे नारी का मान–सम्मान
गरीबों-बेरोजगारों को ठेंगा दिखायेंगें
सामाजिक न्याय की होली जलायेंगे
और फ़िर चुनाव के ठीक पहले
इनका ही दरवाज़ा खटखटायेंगे
_अञ्जलि-
live my childhood
with you
I wanna
make my childhood
as beautiful as you
I wanna be yours
from my root.-
जब चरमरा सा गया
वो मीठी स्मृतियों का पुल
किसी विचित्र धुंध में
धुंधलाने लगा
तुम्हारे लिये
मेरा वो प्रेम
जब बहकने लगी मैं
संसार के भ्रमित
प्रणय निवेदन में
जब अनेक प्रेम ने
प्रवेश किया मुझमें
तब.................
_अञ्जलि
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earlier it was reality
that I have something
in my heart for you
now it's my illusion
but a beautiful illusion
I wanna live in it till the end-