जिंदगी में उलझी हुई सी मैं
जिम्मेदारियो में खोयी हुई सी यादें,
फिर भी कैसे तेरा ख्याल आया
तुम होती तो कैसा होता ये सवाल आया
सपनों में तुझे पास देख हकीकत सा लगा सब
ये दुनिया नहीं वो पल सच्चा सा लगा तब-
I am not a writer and I don't write ... read more
साँझ सवेरे तेरा दीदार , तू कहे तो तेरे लिए पूरी दुनिया इंकार कर दूं
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मैं कुछ ही पल में अपना बना लूँगी तुम्हें
तुम मुझे फिर गैरों सा ना सजा देना
ज्यादा तो नहीं बस, "कैसी हो"
ये पूछ के मेरा होना जता देना-
कुछ पल में तुम अपने लगे,
तार्रुफ़ हुआ तुमसे जो हर ख्वाब सच्चे लगे
कुछ देर और रहते तो सफ़र ज़रा ज्यादा अच्छा होता
तअस्सुफ़ होता दूरियों का मगर फिर ना कोई खुदा से शिकवा होता-
वो हमारे थे फिर किसी और के दीवाने बन गए
वादे भी क्या खूब किए थी साथ निभाने के
फिर वो वादे सिर्फ बहाने बन गए-
मैं लिख देती तेरे दरमियाँ कुछ मोहब्बत के लफ़्ज़ लाजवाब
अगर तुम ठहर जाते निगाहों की तबहहुर में कुछ पल सदा-
ना कसमें थी, ना इरादा था, ना उम्मीद थी, ना ज़िद्द थी
मंत्रों से बंधा वो बंधन हर घड़ी फरेबी वादों से ज्यादा था-
हमारे बंधन का वज़ूद है एक दूजे का मान
मेरे हाथों की छवि है तेरे प्यार की मेहंदी
हमारे रिश्ते का अभिज्ञान है तेरे हाथ से मंगलसूत्र
मेरी श्रृंगार का पूर्ण विराम है तेरे नाम का सिंदूर-
खेत खलिहानों की खूबसूरती वाला क्या ज़माना था
जब महबूब संग साइकिल पर हर गली गली रमाना था-
"मुलाक़ात और बरसात"
पहली नज़र का वो ख्वाब सा एहसास था,
बरसती बारिश में उनका खास साथ था।
धड़कनों का शोर, लबों पे खामोशी,
नज़रों से दिल तक एक मीठी सी कोशिश थी।
चाय की प्याली, और उनका मुस्कुराना,
हर बूँद में जैसे खुदा का तराना।
भीगी जुल्फ़ें, वो झुकी हुई नज़र,
हर लम्हा लगता था जैसे कोई सफर।
बरसात में जब उन्होंने हमें छुपाया,
दिल ने उसी पल उन्हें अपना बताया।
वो पल नहीं बस एक याद बन गया,
पर उस एक मुलाक़ात ने दिल में घर कर लिया।-