ANJALI@   (Anjali@)
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Joined 27 November 2019


Joined 27 November 2019
26 FEB 2022 AT 22:58

एक उम्मीद दरका,
मेरी आँखों के आगे से।
एक विश्वास मिला था मुझे,
जो अब भ्रम-सा हो गया।
वक्त रहते आँखों पर,
चढ़ा हुआ परदा उतर गया।
पर मन तो अब भी,
उलझन में वही खड़ा है।



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19 JAN 2022 AT 22:05

हर शाम सूरज ढलने के साथ
एक उम्मीद मरती है मेरी
कल की सुबह वापस फिर
जिंदा होने के लिए .......

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19 JAN 2022 AT 21:56

यूं तो हमेशा झगड़ते थे
अब नजर मिलते ही
चेहरा फेर लिया करते है।
हर सुबह आदत थी
जिस डांट की
अब पता ही नही चलता
कि सुबह कब बीत जाती है।
कहने को है बहुत कुछ
मगर अधरो पर ख़ामोशी
पहरे लगाए बैठी है।
अब दिन उदास फिरता है
और फिर जख्मों पर
नमक मलने साँझ आती है।।

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12 JAN 2022 AT 12:34

हमने भी शिद्दत से सहेजा है
दिल की धड़कन बन
जो हर पल धड़कता है
सुबह-शाम यादों में
मन भटकता फिरता है
उस मोहब्बत को
मुकम्मल करने की चाहत में
वक़्त की हथेली पर
हमने चंद फासलों को रखा है

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10 JAN 2022 AT 18:52

कमी खलती हैं
हर पल मुझको भी
पर शोर किये बिन
अब ख़ामोशी के
आग़ोश में सोती हूं
जानती हूं मैं,
ख़ुदा ने लिखा है
वो दिन मेरी किस्मत में
मैं बस इंतज़ार में बैठी हूं....

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9 JAN 2022 AT 20:12

मुझे आदत नही है खुशियों की,
खुशियों से मिला सुकून,
मुझमें ठहराव लाते है,
और मुझे आदत नही है,
तालाब बन ठहरने की...
मैं दर्द को हर पल,
अपनी जिबह पर रखती हूं,
हर रोज थोड़ा-थोड़ा चखती हूं,
मेरे दर्द मुझे चलाते है,
चाहे हालात कैसे भी हो,
मुझे ठहरना नही सिखाते है,
शायद मैं नदी-सी निर्मम हूं,
क्योंकि मुझमें शिद्दत हैं,
हर परस्थिति में चलते रहने की....

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23 DEC 2021 AT 10:49

लेकिन वो लम्हा
दिल के सबसे करीब होगा
जिस दिन मेरा खुदा,
मेरी अमानत को,
मेरे हिस्से में देगा।
और मैं साहिल में डूबी,
उस पंछी-सी चहक उठूंगी,
जिसे एक किनारा
मिल गया हो।

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17 DEC 2021 AT 22:35

टूटा तो नही है,
मगर कड़वाहट तो,
घुल चुकी है।
वो दरख़्त,
जिसके छाव तले
महफ़ूज थी मैं,
वहां दरारे,
अब दिख रही है।
फिर भी मैं,
वक्त की राह पर
तकती रहूंगी,
कोई तो मरहम
देगा ख़ुदा दरख़्त को।

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17 DEC 2021 AT 22:13

क्यूं रिश्तों को,
चंद उलझनों में तोड़ देते है लोग,
मैंने कोशिश पूरी की,
समझ सकूं उनके जज्बातों को,
क्यूं नही जान सके तुम,
मेरे हालातों को।

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17 DEC 2021 AT 22:06

जब समझ आया की यादें,
अतीत में दरक रही है,
अपना आँचल फैलाकर,
उधार मांगा था मैंने,
लेकिन देर हो चुकीं थी,
और यादें बेमौत मर चुकी थी।

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