Anjaan Jaana   (©Anjaan_jaana📝)
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Joined 22 March 2019


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Joined 22 March 2019
13 MAR AT 20:07

अगर कमी तेरी और मेरी खुशी की है,
तो चल साथ एक दूजे को फिर से खोजे हम।
एक दूजे के हाथ थामें,
उन्हीं गली कूचों से निकले हम।
जहां सारा जहां अपना हो,
सुबह की आंखों में फिर कोई नया सपना हो।
तू खिलती धूप सी मुस्कुराए,
शाम ढले तो ठंडक बन दिल को सुकून दे जाए।

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26 FEB AT 10:21

ये वक्त है जनाब, इसको गुज़रने का हुनर बाकमाल आता है,
जब भी तेरी गलियों से गुज़रता है काफिला मेरा, हर इमारत में तेरा ही नाम नज़र आता है।

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21 FEB AT 22:00

ये जो उम्मीद्दियों का दरिया है,
बिन मौसम बारिश भी एक ज़रिया है।
ये कश्ती दिलों की उफान पर है,
ये रहमो करम बस ज़ुबान पर हैं।
है बाती सा जलता ये नाम तेरा,
पहलुओं से डरता ये मान मेरा।
तुझे कीमती ये सामान लगे,
एक बोझ तले मेरी जान लगे।

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21 FEB AT 20:28

वो बात कुछ इस कदर करते थे,
हर बात में अपना एक हुनर रखते थे।
चीरते थे दिल को जब तंज वो मारते थे,
भोली सी शक्लों से मनाना भी जानते थे।
कहते थे जिंदगी को एक फलसफा,
और होते थे मुझसे हर बात पर खफा।
चमक थी मेरी उनके चेहरे की एक झलक,
आईना थी आँखें जो रहती थी एकटक।
कमाल थे बेमिसाल थे वो किस्से वो तराने,
एक अकेले कागज में कहां जाएंगे ये समाने।

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17 FEB AT 9:18

कि बात आज भी उतनी वो खास लगती हैं,
जो है अब वो कहानियों में उतनी ही क्यों पास लगती हैं।
जो कहा गया था मुझसे उन लफ्जों में बस,
न हो उदास मेरे जाने से तू बस यहीं सदा खुल कर हस।
मैं आईना हूं जब भी देखोगे खुद में ही मुझको पाओगे,
यूं न शक्लें ऐसी बनाया करो कब तक यूंही सताओगे।
तू जिस्म मेरा मैं तेरी रूह हर पल रहूंगी,
जब भी मन बीते हुए पल में जाए मैं उसे कल कहूंगी।
मत करना गिला अगर ये सफर बीच में ही अधूरा छूट जाए तो,
तुम फिज़ा के साथ आगे बढ़ते जाना तो।
ज़ाहिर हैं ज़माने को ये इश्क समझ न आयेगा,
जो जाने मुझे वो उतना ही तेरा हो जाएगा।


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24 JAN AT 0:27

वो इश्क मुझे दोबारा न होगा,
बेपरवाह सा, आवारा सा न होगा।
थी शिद्दत की मोहब्बत कभी तुझसे,
अब उतना मैं पागल, दोबारा न होगा।

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6 JAN AT 21:15

वो जो खास से मेरे थे,
बड़ी दूर पर जाकर ठहरे थे।
कोई उम्मीद सी शायद अब भी थी,
मुस्कुराहट दर्द से लंबी थी।
वो जो पहले भी नजर-अंदाज़ी रखते थे,
हर एक पन्ने में अपना माज़ी रखते थे।
हम एक न होकर खुश अब भी थे,
खामोशी से गुजरे मेरे शब्द तब भी थे।।


माज़ी
बस एक कहानी नज़्मों की ज़ुबानी।

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1 NOV 2024 AT 23:46

वो लहज़े कमाल के,
नज़रे सम्भाल के।
वो धीरे धीरे बसता चला है,
मन्नत के धागे जैसा कसता चला है।
बिखरे मोती माला में पड़ के,
दोनों रहे बंधन में जकड़ के।
न मेरा कोई साया रहा है,
न लफ्ज़ों का कोई दायरा रहा है।
मैं हूं तू है और रात नशीली,
जज़्बातों की है खुशबू सी भीनी।
इन लम्हों में साथ चलें हम,
कह तुझको खास चलें हम।।

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9 OCT 2024 AT 1:47

वो धूप के साथ चलते हुए कुछ साए,
कई आऐ, कुछ बस यूंही ठहर जाए।
न दर है, न ठिकाना यहां किसी का,
सफर तो है, पर न कोई सफरनामे में किसी का।
ये मैं बस तन्हा सा,
अधूरी कुछ ख्वाहिशों सा।
रिमझिम बारिश में भी, पतझड़ फुहारों सा।

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25 AUG 2024 AT 23:16

कि बस अब और कुछ नहीं, तेरा मेरा वक्त सांझा हैं ।
ख्वाबों की दहलीज़ पर, एक वो अपना मांगा हैं ।

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