उम्मीदों की कश्ती मे सवार था मैं एक उम्मीद साथ लिए की जब देखूँ मैं किनारा तेरा हाथ देगा सहारा झूठी उम्मीदों मे ही जिंदगी जी गया तन्हा था, मैं फिर तन्हा रह गया -
उम्मीदों की कश्ती मे सवार था मैं एक उम्मीद साथ लिए की जब देखूँ मैं किनारा तेरा हाथ देगा सहारा झूठी उम्मीदों मे ही जिंदगी जी गया तन्हा था, मैं फिर तन्हा रह गया
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सच कहूँ तो अभी भी सताती है तेरी यादेंहमेशा याद आती है तेरी प्यारी-प्यारी बातें वो एक साथ बिताए हसीन रातें याद ही रहेगी जब तक चल रही मेरी सांसें -
सच कहूँ तो अभी भी सताती है तेरी यादेंहमेशा याद आती है तेरी प्यारी-प्यारी बातें वो एक साथ बिताए हसीन रातें याद ही रहेगी जब तक चल रही मेरी सांसें
मैं तो भटकता मुसाफिर हूँ मेरा कोई आशियाना नहीअगर मिल जाए तेरे दिल मे पनाह तो बस जाएंगे इक कोने मे कहीं -
मैं तो भटकता मुसाफिर हूँ मेरा कोई आशियाना नहीअगर मिल जाए तेरे दिल मे पनाह तो बस जाएंगे इक कोने मे कहीं
ज़िन्दगी की कश्मकश की कश्ती लेके चला हुँ मैंढूंढ़ने अपना वो किनारा जहाँ होगा नया सवेरा |तूफानों और भवंडर से लड़के पाउँगा मंज़िल मैं या शायद कभी देख ही ना पाऊँ वो किनारा || -
ज़िन्दगी की कश्मकश की कश्ती लेके चला हुँ मैंढूंढ़ने अपना वो किनारा जहाँ होगा नया सवेरा |तूफानों और भवंडर से लड़के पाउँगा मंज़िल मैं या शायद कभी देख ही ना पाऊँ वो किनारा ||
जाने अनजाने मे कैसे हो गए हम बेगानेये पहेली ना मैं जानूं ना तू जाने || -
जाने अनजाने मे कैसे हो गए हम बेगानेये पहेली ना मैं जानूं ना तू जाने ||
तेरे जाने का ग़म बहुत है, लेकिन अब दर्द नहीं |तू दवा ज़रूर है, लेकिन अब मैं वो मर्ज़ नहीं || -
तेरे जाने का ग़म बहुत है, लेकिन अब दर्द नहीं |तू दवा ज़रूर है, लेकिन अब मैं वो मर्ज़ नहीं ||
बात लफ़्ज़ों तक ही पहुँची, कभी बयान नहीं कर पाया |अब हो गयी देर काफी, अब ना साथ तू है ना तेरा साया || -
बात लफ़्ज़ों तक ही पहुँची, कभी बयान नहीं कर पाया |अब हो गयी देर काफी, अब ना साथ तू है ना तेरा साया ||
निकलता हूँ बीते हुए कल से, फिर तेरी यादें मुझे खींचती हैमगर क्या तू जानता है मेरा वक़्त कितना क़ीमती है| हर राह मे हूँ तो अकेला लेकिन बस अनजानों की भीड़ सी हैगिरता रहता हूँ हर बार ना जाने जिंदगी क्यूँ ढीठ सी है|| -
निकलता हूँ बीते हुए कल से, फिर तेरी यादें मुझे खींचती हैमगर क्या तू जानता है मेरा वक़्त कितना क़ीमती है| हर राह मे हूँ तो अकेला लेकिन बस अनजानों की भीड़ सी हैगिरता रहता हूँ हर बार ना जाने जिंदगी क्यूँ ढीठ सी है||
कैद किया है मैंने खुद को शोर मे, लेकिन अब मेरी खामोशियांँ चीखती है जिंदगी मे खाए बहुत ठोकर मगर, रोज वो कुछ ना कुछ सीखती है |छल कपट और धोखे की दुनिया, उनसे ऊपर न्याय की नीति हैजो तूने बोया है वही तू पाएगा यही तो कर्म की रीति है || -
कैद किया है मैंने खुद को शोर मे, लेकिन अब मेरी खामोशियांँ चीखती है जिंदगी मे खाए बहुत ठोकर मगर, रोज वो कुछ ना कुछ सीखती है |छल कपट और धोखे की दुनिया, उनसे ऊपर न्याय की नीति हैजो तूने बोया है वही तू पाएगा यही तो कर्म की रीति है ||
ना बुझ सके कभी, मेरे अंदर जल रही है ऐसी आगरोकता हूँ खुद को, ना लगे कोई लांछन या दाग |जिंदगी तो चलती रहेगी गाते हुए अपने रागलेकिन रुकना पसंद नहीं इसे, उड़ान से पहले लेगी भाग || -
ना बुझ सके कभी, मेरे अंदर जल रही है ऐसी आगरोकता हूँ खुद को, ना लगे कोई लांछन या दाग |जिंदगी तो चलती रहेगी गाते हुए अपने रागलेकिन रुकना पसंद नहीं इसे, उड़ान से पहले लेगी भाग ||