मैं सागर और वो नदी सी है
मेरी हर लहर में शामिल सी है
जब चांदनी अंबर पे छाए
वो वैसी सुहानी निशा सी है
मेरे बिना कहे भी सब समझ जाती है
ज़िंदगी को खुशियों से सजा जाती है
वो जैसे की एक खुशनुमा सा एहसास
उसके साथ ज़िन्दगी खास हो जाती है
वो मुझसे रूठा करती है
मुझपे हक़ जताया करती है
झूठ मुठ के गुस्से मे
वो प्यार छुपाया करती है
उसका होना मेरी खुशनसीबी है
वो मेरी प्रेरणा मेरी कलम सी है
वो जैसे एक सुंदर सी कविता
इस अनजान की जान सी है
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