Anj@li Bisht   (कागज़ी)
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Autodidact
Nature lover
Love to write
Love to read
Active on yq since 28 march 2019
Joined 6 December 2018


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6 MAY 2023 AT 14:16

अपने हिस्से का रोने के बाद रह जाती है सिर्फ
अपने हिस्से की मुस्कुराहट
तब चाहकर भी नहीं बहा करते अश्रु ,
सैलाब बनता है भीतर ही भीतर
एकांत थामे रहता है जिसे
निर्भर करता है कि तुम उस सैलाब से अब क्या चुनोगे !

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14 MAY 2020 AT 3:49

उन लम्हों को छोड़ आए
बहुत दूर कहीं हम
ये तो सिर्फ़ कहने कि ही बात थी
मेरी स्मृतियों में हमेशा ही रहे
तुम और वो प्यार भी
जो बेशक़ बहुत एकतरफ़ा ही था

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23 APR 2020 AT 2:36

धरती को अपना स्वर्ग बना रे
अंधेरी सांझ की जो चिंता सताए
लालिमा का आनंद तू उठाता जा रे
जीवन तो बस एक नाम का है
सुख़ दुख में ही रंग जाते हैं सारे !

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17 APR 2020 AT 14:10

ये सोच मुझे
करती है आज़ाद,
आज़ाद कभी तुमसे
और खुदसे भी
मानों समुन्दर की
लहरों से
किसी तट पर
आ गिरीं हों
पानी की कई बूँदें
जो अब अकेला
रहना चाहतीं हों
जो समंदर का
त्याग करना चाहतीं हों
पर तुम लौट आते हो
फिर कही दूर
मुझे ले जाने
और जकड़ लेते हो
अपनी
स्मृतियों में कहीं
जहाँ से वापस आना
फिर मुनासिब ना हो




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17 APR 2020 AT 13:49

आंसू भी जब रोक लें खुद को
पलकों को ज़रा मींच देना तुम
अकेले ही रात बीतने लगे तो
स्मृतियों की चादर खींच लेना तुम









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1 DEC 2019 AT 21:32

ये रिश्ता मानो अब
उधड़ी हुई बुनाई हो गई है
जहाँ बननी थी बात वही
तुझसे मेरी आज लड़ाई हो गई है

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30 NOV 2019 AT 22:14

रोकना नहीं इस बार
आज ज़रा सवरने दो मुझे
बेरंग मेरी दुनियाँ में
रंग सारे भरने दो मुझे
ताने बाने की मे हक़दार नहीं
थोड़ा तो प्यार करने दो मुझे
टोकना नहीं मेरी गलतियों पर
घावों को मेरे भरने दो मुझे
रहना नहीं अब दुबक्कर
बेबाक बन लड़ने दो मुझे
हाथ पकड़कर बहुत चली हूँ
खुदसे ही अब सँभलने दो मुझे !




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30 NOV 2019 AT 21:06

मुरझायें हैं ये फूल भी
भौरों से रूठ कर
आज पत्ते चले हैं
अपनी ही
डाल को छोड़
आसमां का रंग भी
कुछ फीका सा है
तेरी मेरी चुप्पी से
आज शायद
मौसम ही कुछ ऐसा है

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3 AUG 2019 AT 15:47

कितना मुश्किल है
ये कह पाना
कि मैं और तुम
एक ही दुनियाँ के हैं
जब तुम मेरी
हर बात को
गलत या सही
ठहरा जाते हो

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28 JUL 2019 AT 23:56

अजीब शहर है
कभी दिन की धूप
पांव नहीं रखने देती
ज़मीन पर
तो शाम को
पुकारती है मुझे
बादलों की ओट से
कभी ये बादल
हड़ताल कर
इंतज़ार करवाते रहे
और अब बेबाक़
बरस रहे है



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