मैं अकेले नहीं रो रही हूँ
बारिश भी हो रही है ......-
दिल की दराज में पड़ी थी,
अरमानों की उधड़ी हुई पुरानी सी एक अचकन
करने को तुरपाई, वक्त का धागा, कुछ बटन
और उम्मीदों की सुई साथ लाया है
फिर वो साल आया है ।
अनुशीर्षक में:-
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ढूँढ ही लेती हैं अक्सर.........वो मेरा पता
कमबख़्त! यादों को कौन रोक पाता है?
चली आती हैं बस यूँ ही दस्तक दिए वगैर,
गुज़रा हर लम्हा......रुबरु मेरे हो आता है।
कसक सी उठती हैं....कुछ यूँ सीने में मेरे,
पलकों का कोना, बरबस नम हो जाता है।
महका करता था जो कभी.....दिल में मेरे,
यादों का हर फूल......शूल सा हो जाता है।
वक़्त की धूल से अटा...सिरहाने मेरे रखा,
गुलदस्ता यादों का,फिर ताज़ा हो जाता है।
जीने लगती हूँ.....फिर से गुज़िस्ता वो पल,
मौसम यादों का....जब जब चला आता है।
-me_अना
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आइनों से रोज़ मिलते हो,
गुफ़्तगू तो होती होगी उनसे ?
कुछ तो बताते होंगे वो तुम्हें,
खुद से रूबरू भी कराते होंगे ?
क्या सच दिखाते हैं पूरा,
या कुछ झूठ भी बता जाते होंगे ?
अंदर भी तो नहीं
झाँक पाते हैं आइने ?
जब धूल जम जाती होगी,
धुंधला हो जाता होगा अक्स ?
फिर क्यों साफ नहीं करते हो
आइना तुम ?
-me_अना-
बस्ती ख़्वाहिशों की जला भी न सकूँ
कहना भी है मगर बता भी न सकूँ ।
ख्वाहिशों से मिरी मिलती तो हूँ हर रोज़
लेकिन गले से उन्हें लगा भी न सकूँ ।
कमबख़्त! जब कभी ज़ोर से बोलें ये
इन्हें डपटकर चुप मैं करा भी न सकूँ ।
अपने ही हिसाब से आती जाती हैं ये,
इन पर कोई ज़ोर मैं चला भी न सकूँ।
सोचती तो हूँ कर दूँ इन्हें खुद से जुदा,
पर कैसे ये उलझन सुलझा भी न सकूँ।-
वो प्रेम
स्वीकार नहीं मुझे
जो बेड़ी बन जाए,
दीवारें खड़ी कर दे,
दहलीज़ बन जाए।
प्रेम तो वो
जो पँख दे,
खुला आसमान दे,
सपनों को मेरे
उन्मुक्त,
एक नयी उड़ान दे।-
रात तेरे दिल में क्या है
अमावस है पसरी, तिमिर है गहन यदि
तारों संग जुगनू भी तो टिमटिमाता है
सन्नाटा, अवश्य करता है साँय साँय
परन्तु झिंगुर ने भी तो छेड़ी है झाँय झाँय
सूझ नहीं रहा अगर कुछ भी
नज़र उठाओ,
देखो! ध्रुव तारा राह बताता है ।
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