ढूँढ ही लेती हैं अक्सर.........वो मेरा पता
कमबख़्त! यादों को कौन रोक पाता है?
चली आती हैं बस यूँ ही दस्तक दिए वगैर,
गुज़रा हर लम्हा......रुबरु मेरे हो आता है।
कसक सी उठती हैं....कुछ यूँ सीने में मेरे,
पलकों का कोना, बरबस नम हो जाता है।
महका करता था जो कभी.....दिल में मेरे,
यादों का हर फूल......शूल सा हो जाता है।
वक़्त की धूल से अटा...सिरहाने मेरे रखा,
गुलदस्ता यादों का,फिर ताज़ा हो जाता है।
जीने लगती हूँ.....फिर से गुज़िस्ता वो पल,
मौसम यादों का....जब जब चला आता है।
-me_अना
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