anita Srivastava   (Anita sudhir)
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Student of poetry
Master of chemistry
Joined 19 April 2018


Student of poetry
Master of chemistry
Joined 19 April 2018
21 JUN 2020 AT 10:38


दोहा छन्द
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योग दिवस पर विश्व में,मची योग की धूम।।
गर्व विरासत पर हमें,भारत माटी चूम ।

करते प्रतिदिन योग जो ,रहें रोग से दूर।
श्वासों का बस साधिए ,मुख पर आए नूर ।।

आसन बारह जो करे,होता बुद्धि निखार ।
सूर्य नमन से हो रहा ,ऊर्जा का संचार ।।

पद्मासन में बैठ कर ,रहिये ख़ाली पेट।
चित्त शुद्ध अरु शाँत हो,करिये ख़ुद से भेंट ।।

प्राणवायु की जब कमी ,होते सारे रोग ।
जीवन प्राणायाम से ,मानव उत्तम भोग ।।

ओम मंत्र के जाप से ,होते दूर विकार।
तन अरु मन को साधता,बढ़े रक्त संचार।।

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15 JUN 2020 AT 8:11


विषय काल
दोहन
दोहा
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अधुना युग का देखिए,कैसा पड़ा प्रभाव।
जीवन शैली में हुये ,बड़े बड़े बदलाव ।।

पहिया रथ का दौड़ता,ले कर नाम विकास।
दोहन करते सम्पदा,आकांक्षा के दास ।।

लुप्त हुई संवेदना ,रखते घृणित विकार ।
दोहन जब सम्बन्ध में,करे दिलों में रार ।।

भूल गये संकल्प वो ,जो जीवन आधार ।
संस्कारों का ह्रास है ,हुई सभ्यता भार।।

दोहन के इस फेर में ,हुए सभी मजबूर ।
खेल दिखाती नियति ये ,ठगे गए मजदूर।।

धरती का जल स्तर गिरा,मनन करें ये बोल।
जल संरक्षण कीजिये ,पानी है अनमोल ।।

जल आवश्यक तत्व है,वनम जगत आधार।
दोहन इसका मत करें  ,पीढ़ी  का अधिकार ।।

मिलावटों के दौर में ,होती व्याधि अथाह।
कड़े नियम कानून हो,यही बची बस चाह ।।

विकट प्राकृतिक आपदा,दोहन का परिणाम।
जीवन संकट में पड़ा ,करें नेक सब काम ।।

अनिता सुधीर आख्या













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8 JUN 2020 AT 22:53

दोहा

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30 MAY 2020 AT 18:42

30 मई पत्रकारिता दिवस
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आज खबरों से भरे अखबार को देखो ।
जो कलम बिकती यहाँ बाजार को देखो ।।

धमकियां मिलने लगीं जब पत्रकारों को ,
इस दिवस के हो रहे व्यापार को देखो ।।

झूठ लिपटी चाशनी में सच परोसा है,
लेखनी के गिर रहे व्यवहार को देखो ।।

स्तम्भ चौथा जा रहा जो अब रसातल में,
रीढ़ की उस जेब के भंडार को देखो ।।

दौर विज्ञापन रहा ले हाथ में गड्डी,
चटपटी मिर्ची भरे मक्कार को देखो ।।

जान की बाजी लगा जो सत्य लिखते हैं
उस हृदय में जल रहे अंगार को देखो ।।

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21 MAY 2020 AT 13:56


गजल
काफिया अर। रदीफ़ छोड़ दूँ
212 212 212 212
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रोटियाँ क्यों बताएँ नगर छोड़ दूँ ।
खौफ से क्या तुम्हारा शहर छोड़ दूँ ।।

जान पर खेल कर जो बसाया जहाँ,
आज कैसे वही मैं डगर छोड़ दूँ ।

खौफ में जी रहे मौत है सामने ,
पालते जो रहे वो शजर छोड़ दूँ ।।

जिंदगी ये सदा से डराती रही,
हादसों से डरे क्या सफर छोड़ दूँ।।

खौफ का सिलसिला बैठता राह में,
जो हिफ़ाजत रहे तो खबर छोड़ दूँ।।

उलझनें खौफ की जो सुलझती रहें ,
गुनगुना कर वही फिर बहर छोड़ दूँ।।

अनिता सुधीर आख्या





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16 MAY 2020 AT 21:28

नवगीत -------
16/14
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ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया

राजनीति के तपे तवे पर
गरम रोटियां जब सिकती
तब पाँवों के उन छालों से
व्यथा भाप बन कर फिकती
हृदय यंत्र तब छुप छुप रोते
नाद बुलाते साँवरिया
ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया

सात सुरों की सरगम मध्यम
मौतें सप्तम स्वर गाये
काल क्रूर जब स्वप्न कुचलते
राग गीत कैसे भाये
तप्त दुपहरी ज्येष्ठ दिखाये
मोड़ मोड़ पर काँवरिया
ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया

कर्ण द्वार जब सुनें मल्हार
दृगजल की बरसात हुई
स्वर कंपित हो अधर मौन तब
आज भयावह रात हुई
प्राण फूँक तुम कर्म गीत के
प्रीत भरो अब अंजुरिया
ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया

अनिता सुधीर आख्या









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14 MAY 2020 AT 8:52

मुक्तक

मोहरें शतरंज की जब आज चलना आ गया ।
जो बिसातें हैं बिछीं उनको बदलना आ गया ।।
हादसों के इस शहर में ख्वाब पिसते ही रहे,
बेरुखे इस वक़्त से हमको निकलना आ गया ।।

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8 MAY 2020 AT 21:52

दोहा छन्द
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विकट काल है देश में,डर का फैला जाल।
मौतें तांडव खेलतीं,रूप धरे विकराल ।।

आतंकी माहौल में ,जीने को मजबूर ।
पटरी पर की नींद में ,मर जाते मजदूर ।।

मूर्छित सड़कों पर पड़े ,होता गैस रिसाव ।
चिरनिद्रा में सो गये ,देकर कितने घाव ।।

कहीं सियासी चाल है,कहीं अक्ल है मंद ।
मदिरालय की भीड़ में ,अर्थ भूलता बंद ।।

चौपट हैं उद्योग अब ,बन्द पड़ा व्यापार।
आग जलाती पेट की,मचता हाहाकार।।

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7 MAY 2020 AT 21:06

वैरागी
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मनुष्यत्व को छोड़
देवत्व को पाना ही
क्या वैरागी कहलाना ।
पंच तत्व निर्मित तन
पंच शत्रुओं से घिरा
जग के प्रपंच में लीन
इस पर विजय
संभव कहाँ!
हिमालय की कंदराओं में
जंगल की गुफाओं में
गरीब की कुटिया

पूरी रचना कैप्शन में

अनिता सुधीर

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2 MAY 2020 AT 17:31

दोहे कृपया कैप्शन में पढ़ें

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