11 MAR 2019 AT 8:51

गजल
1222, 1222, 122
काफिया आ
रदीफ़। कर देखते हैं
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उलझनों मे हम पड़े क्यों हुए है
गमों को क्यों बढ़ा कर देखते हैं।

जमाने की हवा है आज बिगड़ी
चिरागों को जला कर देखते हैं।

किस नशे में मदमस्त वो चल रहे
अकड़ उनकी झुका कर देखते है ।

सहारा वो बनी किश्ती की मेरी
चलो उनसे वफ़ा कर देखते है ।

फलक से टूट के बिखरा सितारा
इक कमी है दुआ कर देखते हैं।

खुशी की लहर मे झूमे जमाना
चलो फिर गुनगुना कर देखते है ।

- Anita sudhir