वो जगह वो यादें वो मंज़र देखो ना कुछ भी धुंधला न हुआ
एक तू है जिसे हर वक़्त ये लगता है कि सब कुछ ज़ाया ही था-
ज्येष्ठ... read more
लाख सजने संवरने पर ऐतराज़ है पुरुषों को
लुभाती उन्हें भी सुंदरियां हैं सादगी भाती नहीं-
बेहद हसीन वो पल थे
आज घिर गए हैं जिम्मेदारियों में
जो खोजते थे कल तक सुकून खुद में
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उठाई हैं जिस जिस ने मेरे किरदार पर उंगलियां
दरख्वास्त है उनसे मेरे जनाजे में शामिल ज़रूर हों
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ऐ शुक्रवार आज तूने जो सुकून मुझे दिया है
वो बीता शनिवार और इतवार भी न दे पाया
दिल ने आज ये महसूस किया दिन ख़ास नहीं
किसी का साथ और अहसास खास बना देते हैं
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रगो में इश़्क है और दिल में है ज़ज्ब तू
आंखों में तेरा नूर है ज़हन में तेरा फ़ितूर
जाहिर-ए-जज़्बात नहीं रुह का सुकून तू
मेरी आख़री सांस तक मेरा वज़ूद है तू ...
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इतनी तेज़ धूप में कोई हमसाया तो है
मैं उसकी नहीं वो मेरा सरमाया तो है
हमसे बदले में पा सका न वो कुछ भी
खुदा की रहमत से ज़िंदगी में आया तो है
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नारी वह पारस पत्थर है जिसे छूकर रिश्ते सोना हुए
अपनी इच्छाओं का नि: स्वार्थ दमन कर वो त्यागमूर्ति बने-
या तो यूं होगा कि मेरी चुप का, उसे शोर सुनाई देगा
या फिर अपनी शिकस्त का तमाशा हम ख़ुद ही देखेंगें-
तन्हा मुसाफ़िर हूं अपने सफ़र की
संग में लाखों साजो सामान है लेकिन
मन में रखना है कोई भार नहीं
उन सबको है आभार जो देते हैं साथ
छोड़ गए जो मझधार उनसे गिला नहीं
बस ख़्वाहिश है दिल न दुखे किसी का
सरल हो सफ़र बस अरमान है यही...
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