या रब जानता है या हम खुद
बाहर वाले केवल अनुमान लगाते हैं
जीवन सरल है सहज है "अनिता "
हम ही बेकार में मन को उलझाते हैं
मन को नियंत्रण में रखा ज्ञानी जनों ने
तभी आत्म पथ पर वो निरंतर चल पाते हैं-
समंदर सा गहरा हर ख़याल जो हो गया
तबियत से वो बंदा बैरागी ही हो गया
मन समंदर सम गहरा अति गहरा
उतरकर इसमें अस्तित्व ही बदल गया
हर ख़याल अपना रंग जमाने लगता
मैं ही अब कुछ बेरंग सा हो गया
जमाने के संग अब भी चल रहा हूँ "अनिता "
पर कसम से मेरा जीवन ठहराव बन गया-
मिले जो तू तो पुछू
दो गुलाब पर काँटे ज्यादा क्यों हैं
पता है तू हँसकर यही कहेगा
"अनिता " खुशबू संग हम मिले तो हैं-
आते जाते ही रह गए परछाइयां कैसे मिलती
ये दिल की तख्ती है "अनिता " जल्दी नहीं धुलती-
गुलों का खिलना कौन तय कर पाया है
तेरे शहर में "अनिता " तेरा पता लिए खड़े है-
परमात्मा की बनाई सृष्टि में कुछ भी गलत नहीं है
हर वजूद अपने कारण के साथ उतपन्न हुआ है
पांच विकार बेशक़ हैं तो आत्मा भी है
पर वो खुद को भूली हुई है
मन राजा बनकर अनियंत्रित घूम रहा है
इसलिए दुनिया तो अपनी जगह ठीक है
बस "अनिता " हमने गलत चश्मा पहन लिया है-
तब अथाह शक्ति का द्वार खुलता है
सुकून और शान्ति का साम्राज्य दिखता है
अपने मन को तू जानती है "अनिता "
तभी ये परम साधक बनता है
वरना संसार कहता है ये केवल बाधक है-
वक़्त की दलील बड़ी पक्की होती है
"अनिता " जरा संभलकर इससे चालाकी करना-