Anita singh   (अनुMeeta)
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ना करो कोशिशें ज़िन्दगी की गाँठें सुलझाने की
कमबख्त फ़रेब है छलावे बहुत देती है,,,,,।
Joined 6 March 2020


ना करो कोशिशें ज़िन्दगी की गाँठें सुलझाने की
कमबख्त फ़रेब है छलावे बहुत देती है,,,,,।
Joined 6 March 2020
19 HOURS AGO

हवा का रुख

तेवर देखकर तेरे अब ये एहसास होता है
हवा का रुख बदलना भी बहुत हीं आम होता है

जिधर भी ख़ुश्बुओं का काफ़िला सरेआम होता है
वही दिलबर वही महफ़िल खास-ओ-आम होता है

ना तू जानिब मेरे,ना मैं जानिब तेरे ना मुलाकात होती है
मुहब्बत फासले का फिर यही अन्जाम होता है

बहुत मुमकिन है टूटे दिल ना हो अब ऐतबार फिर से
ना मरहम हीं मिले ज़ख्मों को ना हीं आसरा फिर से

झुककर आसमां नीचे ज़मीं पे छोटा नहीं होता
रस्मों को निभाकर इश्क की कोई धोखा नहीं होता।।

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30 APR AT 10:16

ना पूछो हाल-ए-दिल की बरस जाएंगी आँखें
डूबोगे ऐसे की किनारों को तरस जाओगे
शक-ओ-शुबहा में गुजारोगे ज़िन्दगी अपनी
बिखरोगे सरे आम फिर कोनों में सिमट जाओगे

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22 APR AT 23:05

इक धूल भरी शाम में मुलाकात हुई थी
आँखों आँखों में हीं कुछ बात हुई थी
धुंधले से नज़ारे हीं सही कुछ सहला गए
बातों बातों में तुम्हारी उलझा से गए
ख्यालों की अंधी गली से ग़ुज़रे कई बार
हर बार बस तुमसे हीं मुलाकात हुई ।

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20 MAR AT 14:09

उसके फ़रेब पे भी ऐतबार क्यूं आता है
इनकार पे उसके इकरार क्यूं आता है
छलावा ठहरा वो या चाहत नज़र की
हर तरफ हर कहीं वही नज़र क्यूं आता हे

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16 FEB AT 10:34

ना लम्हों की ख़्वाहिश कोई,ना वक्त की गुज़ारिश तुमसे
ना शिकवे ना शिकायतें ना उम्मीद ना इंतजार कोई

ज़रा ऐतबार तो कर लें,चल तुझे बेपनाह प्यार हीं कर लें
इक उम्र के इंतजार में इक उम्र का इंतजार हीं कर लें

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7 FEB AT 14:56

गुलाबों में गुलशन समाते नहीं
तेरे रुख़ के कायल बनाते नहीं
सिमट जाए गुल में ख़ुशबू तेरी
हैसियत भी इतनी दिखाते नहीं

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24 JAN AT 15:57

ये वही हम हैं या तस्वीर आलम-ए-तन्हाई
हैं मुल्तवी सी ख़्वाहिशों के आगोश में साँसें

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24 JAN AT 15:48

जो लिख दिया काबिल जीने के हो गए

वर्ना सुलग हीं जाते,अपनी हीं आग में

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18 JAN AT 16:12

करते रहे कवायद उसे मनाने की उम्र भर
बाखबर मेरे हालात से,ज़िद्द में रहा वो उम्र भर

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17 JAN AT 16:19

क़सम

क़सम ने क़सम ली क़सम से क़सम की
क़सम हम निभाएंगे,क़सम ने क़सम ली

क़सम ने क़सम से क़सम को था माना
ना जाने क्यूं क़सम ने क़सम तोड़ डाला

ये कैसी क़सम ली थी तुमने क़सम से
क़सम ना निभाई किसी ने क़सम से

क़सम बेगुनाही ना कर पाया साबित
बिख़रा क़सम खुद अपनी क़सम से

क़सम ने समेटा है फिर से क़सम को
कैसी ये रीति बनाई क़सम ने ।

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