किसी गली के एक मकां में
बंद खिड़कियों के पीछे,
उस तकिए की नमी को,
एक चमकती सुबह में
जरा सी धूप दिखाने को,
ज़िंदगी ढूंढ़ ही लेगी.....
किसी सूने से बगीचे की
एक उजड़ी सी क्यारी में ,
उस मुरझाये पौधे पर
किसी बारिश के मौसम में,
कुछ बूंदें बरसाने को
ज़िंदगी ढूंढ़ ही लेगी.....
किसी बोझिल सी धड़कन को
एक भारी से दिल में ही,
खुल कर धड़कने को,
सरगम की एक धुन पर,
खुशनुमा गीत सुनाने को
ज़िंदगी ढूंढ़ ही लेगी....
कुछ छूटे हुए सपनों को
कुछ टूटी उम्मीदों के संग
बांधने को एक डोरी से
उन्हें एक आसमां दिखाने को
और जीवन से मिलाने को
ज़िंदगी ढूंढ़ ही लेगी.....-
किसी गली के एक मकां में,
बंद खिड़कियों के पीछे,
उस तकिए की नमी को,
एक चमकती सुबह में,
जरा सी धूप दिखाने को,
ज़िंदगी ढूंढ़ ही लेगी.....
किसी सूने से बगीचे की,
एक उजड़ी सी क्यारी में ,
उस मुरझाये पौधे पर,
किसी बारिश के मौसम में,
कुछ बूंदें बरसाने को,
ज़िंदगी ढूंढ़ ही लेगी.....
किसी बोझिल सी धड़कन को,
एक भारी से दिल में ही,
खुल कर धड़कने को,
सरगम की एक धुन पर,
खुशनुमा गीत सुनाने को,
ज़िंदगी ढूंढ़ ही लेगी....
कुछ छूटे हुए सपनों को,
कुछ टूटी उम्मीदों के संग,
बांधने को एक डोरी से,
उन्हें आसमां दिखाने को,
और जीवन से मिलाने को,
ज़िंदगी ढूंढ़ ही लेगी.....-
चाहत के उसूल
कुछ अलग ही होते हैं,
हम ज़रा अगर अपनी कहें,
कुछ उनकी भी सुनते हैं..
चाहत के वो फूल
उन बागों में उगते हैं,
सिर्फ बसंत ही ना आए
जहां, पतझड़ भी होते हैं..
चाहत के उसूल
कुछ ऐसे भी होते हैं,
खुशियां ही ना पाना चाहें,
हर दुःख भी बंटते हैं..
चाहत के हर फूल
उन दिलों में खिलते हैं,
बस मैं ही मैं को छोड़,
जो "हम" को रखते हैं..-
डूबी हुई हूं आप में
आपसे ही जन्मी,
सोम हो या शुक्र
आप ही को भजती,
आप से आरंभ मेरा
अंत आप देखती,
दुःख आपको दे दिया
सुख आपको ही सौंपती,
मुझे आपकी कलम लिखे
मैं बस, लेखनी पर चली,
मेरा अपना है कहां
आप सा ही सब हुआ,
मुझे आपमें ही भरती है
आपकी ये भक्ति,
हे शिव! हे शक्ति!-
तुम्हारी यादों का घेरा है
उन यादों में तुम हो
मेरे चारों तरफ़..
तुम्हारी खुशबू का बसेरा है
इन आती जाती सांसों में
मेरे चारों तरफ़..
ख्वाबों में सही, अधिकार मेरा है
तुम हो मुझमें और
मेरे चारों तरफ..-
तुम्हारी यादों का घेरा है
उन यादों में तुम हो
मेरे चारों तरफ़..
तुम्हारी खुशबू का बसेरा है
इन आती जाती सांसों में
मेरे चारों तरफ़..
ख्वाबों में सही, अधिकार मेरा है
तुम हो मुझमें और
मेरे चारों तरफ..-
बसंती गणतंत्र
धानी, सफेद और केसरिया पर
जब बसंत का जादू छाने लगा,
फूल फूल, डाली डाली,
हर भोर में बसंत आने लगा,
खेत, बाग, आंगन, खलिहान
सब बसंती रंग रंगाने लगा,
देशभक्ति आज रंगी बसंती
मौसम भी ध्वजा फहराने लगा,
गेंदे पे बैठ के भंवरा एक
राष्ट्रगीत गुनगुनाने लगा,
नन्हा मुन्हा जो देश का राही
वो बसंती लड्डू खाने लगा,
मां से मांगी विद्या की भक्ति
मन, सरस्वती वंदन गाने लगा,
देशभक्ति में रंगा ये देश
बसंती धुन बजाने लगा,
सारे जहान से अच्छा है जो
देश, वो बसंत मनाने लगा,
हर झंडे के नारों में, देश
बसंती गणतंत्र झलकाने लगा...-
उत्तरायण का सूर्य
जैसे जैसे सूर्य चला
उत्तरायण की ओर,
दिल का हो, या रात का
डर गया तमस घनघोर,
शरद धुंध अब छंटने लगी
हुई उजली उजली सी भोर,
ठंड और कोहरे के संगम में
खींचे तिल गुड़ अपनी ओर,
हंसने हंसाने का मौका हो
और हाथों में पतंग की डोर,
दिल में उमंग उठने लगी
मीठा लगे हर शोर,
सब बैठ के खाएं मूंगफली
मन हुआ, नाचता मोर,
किरणों की चमक से दमके मन
आनंद छाया चहुंओर,
द्वेष सोख, मन हर्षित कर
रवि चला, उत्तरायण की ओर..-
एक बार, इस बार..
खाली अपने इस दिल को,
हर उलझन, हर सिकुड़न से
अब मुक्त करूँ मैं,
एक बार करूँ मैं , इस बार करूँ मैं...
अपनी ही ख़ुशी और ख़ुदी को
प्यार थोड़ा, दुलार थोड़ा सा
ख़ुद को करूँ मैं,
एक बार करूँ मैं , इस बार करूँ मैं...
सारे दर्द और ग़म, शिक़वों को
दूजे रस्ते, या नए बस्ते में
अबकी बार भरूँ मैं,
एक बार करूँ मैं , इस बार करूँ मैं...
अबकी हिम्मत, जोश-ओ-जुनून
अपने ख़ून, अपनी ही रगों में
इस बार भरूँ मैं,
एक बार करूँ मैं , इस बार करूँ मैं...
रंग गुलाबी या नारंगी हो
एक साड़ी, बिंदी ही ख़ुद को
अब नज़र करूँ मैं,
एक बार करूँ मैं , इस बार करूँ मैं...
मुस्कुराहटों को अपनी ही, या
अपनी आँखों की गहराई को
इस बार पढ़ूँ मैं,
एक बार करूँ मैं , इस बार करूँ मैं...
एक ग़ज़ल अपने वजूद को
कुछ नमकीन, कुछ मीठी सी
अब अर्ज़ करूँ मैं,
एक बार करूँ मैं , इस बार करूँ मैं...
कस कर थाम के अपने हाथों को
कच्ची सी डगर, या पक्की सड़क पे
अबकी बार चलूँ मैं,
एक बार करूँ मैं , इस बार करूँ मैं...-
कुछ पत्ते टहनी से झड़ गए
कुछ फूल बागों में खिल गए
एक नया गुलिस्तां सजाने
ये शाम देखो चल रही है
इस साल की है आख़िरी
ये शाम देखो ढल रही है..
कुछ ने आसमां छू लिया
कुछ हैं धरा में मिल गए
बुनने को सपनों का आशियाना
ये शाम देखो चल रही है
इस साल की है आख़िरी
ये शाम देखो ढल रही है..
खुशियाँ वो फिर से आएंगी
होंगें थोड़े गम भी संग में
थामने उस नई सी शाम को
ये शाम देखो चल रही है
इस साल की है आख़िरी
ये शाम देखो ढल रही है..
लिए लबों पे मुस्कुराहट
जोड़ने को तार दिल के
आने वाली शाम को सबसे मिलाने
ये शाम देखो चल रही है
इस साल की है आख़िरी
ये शाम देखो ढल रही है-