फरेब का दौर चल
रहा है साहब,
इंसान भी फरेब़ी हो गया
और रिश्ते भी फरेब़ी,
बनाता हैं......
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माना मिठास नहीं शब्दों में मेरी,
मगर ये कड़वापन भी तो अपनों,
ने घोला जिन्दगी में मेरी..........-
ऐ जिंदगी ठहर जा ज़रा
वक्त के इम्तिहान बाकी है,
अपनों के सवाल बाकी है,
कलयुग के दौर में,
लोगों में तकराऱ बाकी है.......-
हजारों ऐब़ शामिल हैं
मुझमें,
ये लोगों का नज़रिया कहता है,
काश कोई तो ऐसा हो जो
अलग नज़रिये से देखता,
मुझे...........-
ये दुरियाँ कुछ यूँ थीं कि
फासलें मीलों के थें मगर,
करीबी दिलों के थें,
बेशुमार इश्क़ थी इन आँखों में
मगर लब़ कुछ खामोश थें.............-
पता नही ये वक्त की मांग है या
कुदरत की कोई साजिश ,
कि दुरियाँ मीलों की रख हमें
करीब रखा है.........-
थाम लो हाथ मेरा इस भीड़ की दुनिया में,
कहीं खो ना जाए दुर तुम से हो ना जाए ......-
Ek sukun milta hai
tujhe dekh ker,
Ek sukun milta hai Tere
hoton ki muskan dekh ker,
Ek sukun milta hai
Teri awaj sun ker,
Na jane ye kaisa sukun hai
Jo tujhe mahsus kerke hi,
Milta hai............-
लोगों का नज़रिया तो देखिए
जनाब,
खुद की सोच गिरी हुई है और
लोग दुसरो कि सोच उठाने में
लगें हैं.............-