Dear ज़िन्दगी
तेरी सुक्रगुज़ार हूँ
जो इस हसीन दुनिया से मिलवाया जिन खुशियों की हकदार तो न थी पर तूने सभी खुशियों से रूबरू करवाया
बेफ़िक्र से खाना और सोना ज़िद पूरी न होने पर रोना
माँ की लाड़ ओर पापा के प्यार से दिन रात होना!!
ज़िंदगी तू तो इतनी आसान है फिर फ़क़त में ही तू सरेआम बदनाम है ....
समय ने अपना रुख मोरा
अपनो ने ज़िमेदारी की राह पर अकेले छोरा
बेवज़ह की डाँटो से आज़ाद थी चंद पलों की खुशी में इतनी महफ़ूज़ थी कि ज़िन्दगी की दिखावें से भी गुमनाम थी!
ज़िमेदारी की राहों में कदम बढ़ाया बिना सहारे के चला था चंद कदम ज़िंदगी ने सरेआम अपनी बोझ से गिराया....
सच कहूँ ऐ ज़िंदगी
पहली दफ़ा तूने अपने सच्चाई से रूबरू करवाया
ज़िमेदारियो के तले दबे गयी थी,अकेले इस राह में चलते चलते थक गई थी
हर रोज एक नई तकलीफ हर रोज एक नया गम ऐ ज़िंदगी जीते जी हर रोज मर रहे है हम....
सुकून से जीने की दुआ तो मुक़मल न हुई
बेफ़िक्र भारी मौत देना
मेरी मौत की ख़बर पर मेरे अपनो की आँखों को अश्क़ों की जगह यादों से भर देना!!!!
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