क्या-क्या सहना पड़ता है जी
कितनी मँहगी ये रोटी है
कैसे खरीदूँ यार ग़ुबारे
बेच रही जो वो बच्ची है
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जिसकी तुझ सी महबूबा हो
उसकी चाँदी ही चाँदी है
جس کی تجھ سے محبوبہ ہو
اس کی چاندی ہی چاندی ہے
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तारे मैं तोड़ के लाता नहीं कैसे आख़िर
उसकी ये मुझ से झिझकते हुए फ़रमाइश थी-
सागर तेरी पलकों ने लगता है कोई सँभाला है
जो भी इन में डूबेगा वो कितना क़िस्मत वाला है
लहरों जैसी काया उस पर चाल शराबी ये तेरी
जब जब देखूँ मुझको लगता तू इक मय का प्याला है-
किसी से की है हँस के बात उस ने
बस इतनी बात से दिल डर गया है
کسی سے کی ہے ہنس کے بات اس نے
بس اتنی بات سے دل ڈر گیا ہے-
मुझे वो चाहे लबों से सुनना
इधर मैं कहते अटक रहा हूँ
مجھے وہ چاہے لبوں سے سننا
ادھر میں کہتے اٹک رہا ہوں-
उल्फ़त परिंदों की लिए सूखे हुए दरख़्त
मर कर भी रहते हैं खड़े सूखे हुए दरख़्त
तुझ से बिछड़ के हाल है कुछ इस तरह मेरा
लगते हैं ख़ुद से मुझको ये सूखे हुए दरख़्त-
रब की भेजी हुई नेमत की तरह करते हैं
क़द्र अलफाज़ की दौलत की तरह करते हैं
رب کی بھیجی ہوئی نعمت کی طرح کرتے ہیں
قدر الفاظ کی دولت کی طرح کرتے ہیں
हम तो शाइर हैं न ठुकराओ बसा लो दिल में
हम महब्बत भी इबादत की तरह करते हैं
ہم تو شاعر ہیں نہ ٹھکراؤ بسا لو دل میں
ہم محبت بھی عبادت کی طرح کرتے ہیں-
मुब्तिला रहता हूँ हर वक़्त गुनाहों में मगर
फिर भी बंदा तो हूँ ऐ मेरे ख़ुदा वंद तेरा-
कर नहीं सकता बयाँ हुस्न कोई छंद तेरा
क्योंकि है हुस्न किसी हूर की मानंद तेरा
चाँदनी से ये नहाई तेरी मक्खन सी कमर
क्या कहूँ उस पे मैं फिर हाय कमरबंद तेरा-