दिल मे रख के दगाह मेरे खास बनते हो
मुझे कुछ नही है पता ये एहसास रखते हो
तुम्हारे दिल की एक-एक बात जानता हूँ
में "इंसान" हूँ आस्तीन के सांप पालता हूँ-
रास्ते भटक गया
धुंधला गयी है मंजिले
देख धूप को,मुसाफिर
छाँव में सिमट गया
वक्त की गुहार पर
शांत ही खड़ा रहा
देखता चला मुसाफिर
राह की ये मुश्किलें
मिट गयी है चाह अब
राह से निकल गया
लौट कर के घर मुसाफिर
टूटकर कर के सो गया-
तुमने दिए थे जो जख्म
वो अब नासूर बन गए है
कहते थे जो पत्थर हमे
देखो हम कोहिनूर बन गए है
-
निकले है हम सूरज की किरणों के पीछे
राह की मुश्किल पगडंडियों पर नंगे पाँव
ढलते सूरज के साथ मंजिल धुंधला रही है
और कुछ जुगनू सोच रहे है कि लौट जाएँगें हम
नादान है वो सूर्य के उदय को नही रोक सकते
ना ही रोक सकते है मुझे राह के कांटे चलने से
गिरते उठते पहुँच ही जाऊँगा में मंजिल तक
जीत के खुदके मन को लौट जाएँगे हम घर को-
सपनो की पोटली में कुछ एक तारे बटोर के रख लिए
अब चाँद से उम्मीद नही है मुझे कि वो चाँदनी बिखेगेरा-
मत देख तू ये मुस्कान चेहरे की दिन में
सब फरेबी है उजाले में झूठ बहुत है
नकाब उतार कर मिलेंगे सब अंधेरे में
देखना है तो रात का बिखरना देख
-
चाँद हो तुम और अमावस्या की रातें
बहुत ही प्यारी है तुम्हारी आँखे।
गुलाब के जैसे अधर तुम्हारे
है झील के जैसी तुम्हारी आँखे।
पतझड़ से सूखे मौसम में
है वसन्त के जैसी हरियाली आँखे।
माथे पर बिंदी काली हो और हो लटे कपोलो पर
भौंहों को ऊपर कर दो तो बन जाये नशीली आँखे।
प्यार,क्रोध,अपनत्व सभी ही
बयां कर देती तुम्हारी आँखे।
दूर बैठ देखूंगा में तुमको
कही डूबा ना ले मुझे तुम्हारी आँखे-
धूप में तुम छाँव सी
पर्वत बड़ी विशाल सी
तुम शांत नदी की धारा हो
माँ, तुम आंखों का तारा हो
❤️-
दबा हुआँ हूँ इस कदर
ख़्वाहिशों तले अपनी
अगर सांस भी लेनी हो तो
बदले में ख्वाहिश गिरवी रखनी पड़ती है-