आंखों के बीच बसी
सादगी के लफ्ज़
जो होठों तक पहुंचकर
चुप रहकर भी
कितना कुछ कह जाती है!
पास आकर
एहसासों को जगाकर
मन एवं अंतरमन से
बहती प्रेमधारा को
समेट लेती है
निश्चल एवं निस्वार्थ
इस प्रेम धारा के छोर को
इक प्रेमी एवं प्रेमिका
पकड़ी रखती है मन से
जैसे आंखें पढती है
नजरों के इश्तिहार को
यूं
मुस्कुराकर सब कुछ कह जाना
जैसे बयां कर जाती है
चुपचाप सारी बातें
इक गुलाब अपने मालि को
यूं ही हर इक
किरदार के बीच
दिल के एक कोने में
बसा होता है प्रेम
जिनके अनुभव को
साझा कर जाती है
ये खूबसूरत आंखें
जैसे तुम समझ जाती हो मेरी बातें
जैसे मैं समझ जाता हूं तुम्हें-
आंखों के बीच बसी
सादगी के लफ्ज़
जो होठों तक पहुंचकर
चुप रहकर भी
कितना कुछ कह जाती है!
पास आकर
एहसासों को जगाकर
मन एवं अंतरमन से
बहती प्रेमधारा को
समेट लेती है
निश्चल एवं निस्वार्थ
इस प्रेम धारा के छोर को
इक प्रेमी एवं प्रेमिका
पकड़ी रखती है मन से
जैसे आंखें पढती है
नजरों के इश्तिहार को
यूं
मुस्कुराकर सब कुछ कह जाना
जैसे बयां कर जाती है
चुपचाप सारी बातें
इक गुलाब अपने मालि को
यूं ही हर इक
किरदार के बीच
दिल के एक कोने में
बसा होता है प्रेम
जिनके अनुभव को
साझा कर जाती है
ये खूबसूरत आंखें
जैसे तुम समझ जाती हो मेरी बातें
जैसे मैं समझ जाता हूं तुम्हें-
जीवन में हमेशा लड़ना सीखे। सुबह की किरणो से लेकर रातों के चमकते तारों के बीच कोई ना कोई आपके नकारात्मक भावनाओं को हाथ पकड़ कर नई ऊर्जा में जरूर प्रवेश करवाता है। कभी गिरते हैं आंसू तो अकेले बैठकर मन को स्थिर करके बहने दीजिए उन आंसुओं को।
और फिर लग जाइए उस रास्ते पर दौड़ लगाने के लिए जहां से आपको मंजिल मिल सकती है । जीवन में ना चाहकर भी कितना कुछ घटित हो जाता है । जिसे आप रोक नहीं सकते। कभी स्वभाव गलत हो सकता है कभी वक्त गलत हो सकता है । पर इन सबके बीच आपका हौसला बढ़ाने के लिए जीवन के रंग में कोई ना कोई आपके साथ जरूर आएगा।
यह मुरझाने जाने का वक्त नहीं । यह वक्त है कड़ी मेहनत और हौसला के साथ कुछ कर जाने का।-
जीवन के अनुभव के साथ एक परिवेश का साक्षात्कार होना काफी महत्वपूर्ण संदेश है। संगम या मिलन के बीच कुछ घटित हो जाना जिससे आपको इक नई ऊर्जा मिल जाए या आपका मन डूब जाए एक गहरी समुद्र में संवेदना के बीच।
पर हर बार हमारा अंतरमन कुछ ना कुछ कहता जरूर है।जिससे एक स्थिति उत्पन्न होती है ऐसी स्थिति जिसमें या तो ऊर्जा भरपूर भरा होता है या उस ऊर्जा में छटपटाती एक नकारात्मक भावपूर्ण समझ।
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मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब ब्रह्मा जी ने पृथ्वी का निर्माण शुरू किया तो उन्होंने प्रकृति का भी निर्माण किया। इसके बाद देवी प्रकृति ने स्वयं को छह रूपों में विभाजित किया। जिसके छठे अंश को छठी मैया के रूप में जाना गया। इसी प्रकार छठी मैया को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री के रूप में भी जाना जाता है।
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महाभारत काल से हुई थी छठ पर्व की शुरुआत
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इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।-
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सूर्य देव के पिता का नाम महर्षि कश्यप और उनकी माता का नाम अदिति था. माता अदिति की कोख से जन्म लेने की वजह से ही उनका नाम आदित्य हुआ.
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रोशनी का महत्व
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दीपों का का उत्सव दीपावली में रोशनी की कितनी अहमियत होती है जिसे शब्दों से बयां नहीं किया सकता।
जैसे जीवन के हर एक संघर्षों में रोशनी ,एक प्रकाश
जो आपकी मंजिल तक आपको रास्ता दिखाती है। जैसे भावनाओं को समझने के लिए प्रेम की रोशनी की आवश्यकता होती। आचरण को समझने के लिए व्यवहार की रोशनी की आवश्यकता होती है। नजरों को समझने के लिए निश्छल मन के रोशनी की आवश्यकता होती है। जीवन के हर इक पहलू को अंतरमन से छूने के लिए जिज्ञासा , निस्वार्थ ,निश्छल मन, शुद्ध आचरण, व्यवहार , नजरिया दायित्व, सादगी, सभी को प्रेम के घड़े में डुबकी लगाना पड़ता है। किसी की उम्मीद, किसी की मंजिल, किसी की चाह... यह सब संघर्ष और मेहनत के भारी बस्ते से
या तो खुल जाती है या
जीवनभर बंधा रह जाता है यह बस्ता।
प्रकाश के इस महापर्व में सभी को शुभकामनाएं!
सभी को जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि मिले।
©®अनिरुद्ध तिवारी
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उलझे मन को
एक बात
हमेशा दुख देती है
इतना
की जिसे मैं
नहीं कह पता किसी से
और अंततः
यह दिल का भारीपन
आंखों से
बारिश की तरह
गिर जाती है बूदें
जैसे बारिशों में
संभालता है कोई
अपने टूटे-फूटे घर को
टूटी फूटी बर्तनों से।
ठीक उसी तरह
समझाता हूं खुद को
ओर फिर,
चल पड़ता हूं
अश्कों को संभालते हुए
अपने मंजिल के
अगले पड़ाव की तरफ-
पीली साड़ी में
बैठी थी
स्मृति एक कोने में
होठों को दबाकर
नजरों को चुराकर
मुस्कान को समेटकर
बालों को बिखराकर
लफ़्ज़ों को सहलाकर
ओर हां!
एक छोटी सी बिंदी
माथे पर लगाकर
जैसे बारिश की बूंदे
भिगोए देती है
पृथ्वी के तन बदन को
हां!
उसी तरह
जैसे एक प्रेमी डूब जाता है
अपनी प्रेमिका की आंखों में
जैसे एक कवि डूब जाता है
अपनी मनपसंद कविता में
हां !
सुनो!
जैसे रात भर कोई देखता
उस चांद को टकटकी लगाए
ठीक उसी तरह
देखा था मैंने
तुम्हें !
अपने नजरों से......
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