वो जो उड़ा करते थे खुले आसमान में...
अब महदूद होकर रह गए हैं...
वो पंछी मेरे गांव के...
अब शहर में क़ैद होकर रह गए हैैं...-
मैं शायर तो नह... read more
वो सफ़र जो रुक सा गया हैं...
ना जाने कब वो पूरा होगा...
उस पार हैं जाना राह-रौ को...
ना जाने कब ये सफ़र शुरू होगा...-
सिर्फ पहचान नहीं हैं...
ये हमारी जान हैं...
रहते हैं सब यहां...
किसी एक का नहीं ये जहान हैं...
मिलते हैं दिल सबके...
भले ही जुबान पर कटाक्ष हैं...
मुसीबतें हो कितनी भी...
जिंदगी जीने का अलग ही अंदाज हैं...
ये मेरा वतन हिंदुस्तान हैं...-
रोज आते हो मेरे दर पर, ना जाने क्या चाहते हो...
मेरी हिम्मत हो और मुझे से ही डर जाते हो...-
वक़्त की बातें ना करो अब वक़्त गुजरता ही नहीं...
ना जाने ये कैसा सफ़र हैं जो पूरा होता ही नहीं...-
गुलज़ार में आज भी खिला हैं एक गुलाब जिसको कांटों ने ढक लिया हैं...
हौसला तो देखिए गुलाब का उसने कांटों को भी अपने वश में कर लिया हैं...-
चल दिए हैं वो ना जाने कहाँ...
ना घर हैं यहाँ ना वहाँ...
बस पहुंचना हैं उन्हें किसी के पास...
कुछ हैं अपने भी उनके साथ...
शायद एक डर हैं जो उनको सता रहा हैं...
कौन हैं अपना कौन पराया नहीं समझ आ रहा हैं...
बस चल रहे हैं इधर से उधर...
देश का हर कोना हैं उनका कोई क्यों नहीं उनको ये बता रहा हैं...-
न जाने कितने असरार है चेहरें के पीछे...
ता-उम्र गुजर गई सुख़न-वर की उसको जानने में...-
ख्वाब हो गए जो कभी ख्वाबों में आया करते थे...
पता पूछते हैं जो कभी रास्ते दिखाया करते थे...
ना जाने कहां खो गए वो लोग...
जो बिना बात के ही अपना बनाया करते थे...
तोलते हैं बातों को फिर कुछ नहीं बोलते हैं...
इस शहर के लोग न जाने क्यों इतना सोचते हैं...
सरल बातों में भी दिमाग लगाते हैं...
इस शहर के लोग दिल भी होता हैं क्यों भूल जाते हैं...
ना जाने कहां खो गए वो लोग...
जो बिना बात के ही अपना बनाया करते थे...-
क्यों खाली सा लग रहा हैं ना सब...
आदत हो गई थी ना...
वो शोर-शराबा, वो दौड़-भाग की...
अकेलापन सा महसूस हो रहा हैं...
पर क्यों...
खुद के साथ रहने में डर लगता हैं क्या...
यही तो चाहते थे कुछ वक्त मिले...
खुद के लिए खुद को...
अब हैं तो पर किसी को चाहिए नहीं...
क्यों खाली सा लग रहा हैं ना सब...
आदत हो गई थी ना...
वो शोर-शराबा, वो दौड़-भाग की...-