मैं आप रूपी वटवृक्ष का हूँ, एक छोटा सा पल्लव
आप से पायी हस्ती अस्थि, और बने आँगन के करलव।
निष्ठुर नियति के कुटिल जगत में मैं निकल पड़ा मज़दूरी को
प्रेम अथाह है, कह ना पायें , दोनो समझ रहे मजबूरी को।
विशाल हृदय के एक कोने...में बस सदा ही बसा रह जाऊँ,
अभिलाषा है प्रत्येक जन्म में.. मैं आपका अंश बन पाऊँ।
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