आँख मिलाओगी जानोगी तब ही तो कैसा हूँ मैं
ग़र पूछोगी मुझसे तो बस कह दूँगा अच्छा हूँ मैं
मैं तो कंपकंपाता तुम तो छूने से कतराती हों
एक तुम ही तो हैं कि जिसका हाथ पकड़ सकता हूँ मैं
मैं तो ऐसा फूल की जिसने काँटे ज्यादा पाए हैं
कितनों को छोड़ा हूँ जाने कितनों का छोड़ा हूँ मैं
सबकी चाहत पूरी करता फ़िर थोड़ा मर जाता हूँ
कभी-कभी तो लगता हैं कि टूटता तारा हूँ मैं
मैंने रातों को रातों सा बनते - बनते देखा हैं
बिस्तरों से लड़ के गीले तकियों पे जागा हूँ मैं
कैसे भी करके तुम उसको शीशें से बाहर लाओ
शीशें में वो शख्स कि जिसको चिल्लाता लड़ता हूँ मैं
मिसरें में तुम मक्ते में तुम बातों में भी रहती हो
शुरू - शुरू में तुम हो मेरी आख़िर में तेरा हूँ मैं-
रकीबों से मुझको भी तो तोहफ़ा अता हुआ
पूरा धसा किसने कभी खंज़र नही देखा
वारिस तो कैसा भी हो माँ सर पे उठाती हैं
मिट्टी को कभी रेत के ऊपर नही देखा
पैरों में तेरे धड़कनों को बाँध दिया था
साँसे फूली तूने कभी चलकर नही देखा
तवलख़ ही खाली कर दिए मैखाने मुसलसल
दारू का दोष कि कभी पीकर नही देखा
मेरी कशिश पे जलपरी क़ुर्बान हो गई
तुझे पा के देखा पर तेरा पैकर नही देखा
तुझपे कहाँ मिसरा सभी महबूब में गए
बस तूने मेरी आह को छूकर नही देखा-
मेरे घर पे आया मेरा घर नही देखा
उसने तो ये डूबा हुआ पत्थर नही देखा
उसके ही सामने तो मेरा क़त्ल हुआ था
वो कह रहा हैं उसने मेरा सर नही देखा
जिस बालू को पानी की आँखे छूनी नही थी
वो देती दलीलें कि समंदर नही देखा
मुझमें से निकल के कभी जा ही ना पातें तुम
पर तुमनें कभी मुझमें उतरकर नही देखा
जी भर गया था उसका मुझे देख-देख कर
पर देख के भी आँख में भरकर नही देखा-
चाहे हो काँटो में बाहें अच्छा हैं
अब तू भी छोड़ के जाना चाहे अच्छा हैं
नज़राया ये हाल हुआ कि अब मुझपे
ना गुज़रे तेरी निगाहे अच्छा हैं
मरने की तुझपे ऐसी मैंने ठानी हैं
मेरी मौत पे तू ना आए अच्छा हैं
पूछेगी तेरे बेटे से क्या बनना हैं
वो मेरा चेहरा बताए अच्छा हैं
मैं तो उसको खूब अच्छे से जानता हूँ
सब उसको अच्छा बताए अच्छा हैं
सिगरेट भी पहले हानिकारक होती थी
अब तो बस हम धुँआ उड़ाए अच्छा हैं
मिरे मरने पे मिसरों को मयस्सर हो
मिरे बाद में सब दोहराए अच्छा हैं
मैं तेरा किया ग़ज़लों में कह डाला
तेरी भी निकली हैं आहें अच्छा हैं-
चाहे लड़े खुद से मगर राहे हमारी चाहिए
हमकों उर में भी कही ऐसी चिंगारी चाहिए
कोई भी तूफ़ान आकर दे हवा कैसे भी दे
सूर्य के सीने की हमकों आग सारी चाहिए-
यूँ जानो कि ग़ज़लों का तो मेला हूँ
अपने मिसरों में तो मैं अलबेला हूँ
ख़ुद ही अपने पास में जब-जब बैठा हूँ
तब मालूम हुआ कि मैं अकेला हूँ
उसके पीछे कितनों से लड़ता था मैं
जैसे मैं इंसाँ नही झमेला हूँ
जिसने मुझको खेल-खेल में छोड़ा था
जान की बाज़ी तक उसपे मैं खेला हूँ
करना जो क़ुबूल तो नीम सा करना तुम
कड़वा भी हूँ और थोड़ा कसैला हूँ
मिरे रक़ीबों तुमको भी मुबारक हो
मुझको भी लगता था उसका पहला हूँ
बुलंदियों पर जाना मुझको आता हैं
बुलंदियों को छूने वाला अगला हूँ-
तुमसे मिलके पहला सा सवाल क्या होगा
मैं भी देखूंगा कि मेरा हाल क्या होगा
आँखों-आँखों में तभी कुछ बात तो होगी
खामोशी में बातों का कमाल क्या होगा-
तेरे बाद तो अगला कोई उन्स नही
जान के भी अग़्यार किया हैं जाने दो
मैंने तो चुप रहके तुमको कह डाला
तूने उसको अख़बार किया हैं जाने दो
ज़दा समंदर हँसकर लहर उछालेगा
उसने कितना ज़ार किया हैं जाने दो
कुल्हाड़ी की फ़िक्र दरख़्तों को भी हैं
खुदको कितना फ़िगार किया हैं जाने दो
रफ़्ता-रफ़्ता मिलने आया फिर तुमने
बिछड़न को रफ़्तार किया हैं जाने दो
मिलने पर तो जीना कि मरना ही हैं
यादों ने बीमार किया हैं जाने दो-
तुमने ज़ख्मों पे वार किया हैं जाने दो
मैंने तुमसे प्यार किया हैं जाने दो
अरसे बाद तू ऐसा जिससे नज़र मिली
उन नज़रों ने मार दिया हैं जाने दो
बंद आंखों से तेरा चेहरा देखा हैं
बाकी क्या श्रृंगार किया हैं जाने दो
दरियाँ से मिलने को सागर आया हैं
कितना रस्ता पार किया हैं जाने दो
तुम दो क्षण को मेरे होकर चले गये
खुद को तेरा हर बार किया हैं जाने दो-
तू जो चलाए तीर तो बस खूँ ही बहेगा
ले मैं दूँ ज़हर तीर पे वो सब लगा ले तू
रब देखेगा मजहब तो वो भी मर ही जाएगा
कह देगा मैंने कब कहाँ मजहब लगा ले तू
मुकरे हैं कितने पर कभी मुकरा नही हैं जो
रब कहता उसको दिल के मुक़र्रब लगा ले तू
तासीर तेरी ज़ख़्म पे तेज़ाब के जैसी
कैसे हैं जिंदा हम ये तज़ब्ज़ब लगा ले तू
ग़ज़लों में आह-वाह सारी खुलके आएगी
मिसरे सारे मक्ते तलक गज़ब लगा ले तू-