Anindita   (Anindita.)
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Joined 3 February 2019


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18 MAY AT 12:29

वो बिछुड़े बीच राह
हम आगे निकल गए
लोग एसे ही जीते हैं
ये सच हम निगल गए।
वक्त ना मिला उसके गले लगने का
एक अर्सा जिसके साथ घंटों निकल गए।
कहने तो देते "रुक जाओ!"
कहने से पहले निकल गए।।

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26 APR AT 20:05

दिल-ए-दरख़्त की शाखों पर तेरी यादों के कोपलों
को हम रोज़ सहेजते हैं।
शब-ए-पतझड़ रोज़ कईं पत्ते तोड़ गिराती है जैसे तू
बिछड़ रहा हो धीरे-धीरे।

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4 APR AT 13:26

Once upon a time, there lived an old man,
He talked to one and all that he can
Not to man, no he couldn't talk to beings called human
He talked to nature and all her eccentricities
He talked to the sky and all its vast beauties
He talked to the ocean and dived into a deep conversation
He talked to the birds and learned of their flight
He talked to the green leaves and the yellow and orange ones too
He listened to their life stories and penned them with his ink blue.
He talked to the eyes of a deer
He talked to the flighty hare
He talked to the winds and the frost
But he got the chills for that was the cost.
When he laid coughing in his bed
He still talked to the curling nightshade
And while dreaming of some more talks he drifted into sleep
That night outside the window nature weeped.
He was called odd and his talking considered vain
And when he died never such a man was born again.

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1 APR AT 13:24

वो कहता है चली जाओ
और फिर हाथ पकड़ लेगा।
पास रखना भी नहीं उसे
मुझे दूर जाने भी नहीं देगा।
खिंचातानी है दिल की कैसी
बंधन नहीं फिर भी बांधे रखेगा।।

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31 MAR AT 0:59

कितनी बातें तुझसे करती हूँ तिरे हिज्र में
तू मिले तो जाने क्यूँ सारी बातें खो जाती हैं।
तिरा दिखना है जैसे महताब का दिखना
तू जो लगे सीने से मेरी ईद हो जाती है।।

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27 MAR AT 21:13

तू जो पास हो मेरे
तेरी मैं बलाइयाँ लूँ।
तू ख़ुद एक तोहफा है
तुझे क्या बधाइयाँ दूँ?
तारें नवाज़े हैं आँखों को तेरे
तुझे क्या रोशनाइयाँ दूँ?
तू गज़ल है मेरे दिल की
तुझपर क्या क़ाफियाँ दूँ?
तू ख़ुद आस्मां-ओ-जबल है
तुझे क्या राफ़ियां दूँ?
मैं दे सकती हूँ इंतज़ार मेरा
के तेरे लिए मुन्तज़िर हूँ।
तू कहे जो दे जान तेरी
मैं कहूँ लो हाज़िर हूँ।
तूझे माना ख़ुदा जो
दुनिया की मैं काफ़िर हूँ।
तू मंज़िल ना सही मेरी
तेरे राहों की मुसाफ़िर हूँ।
ये नज़्म ही दे पाऊँ तुझे
इसके ही बस मैं काबिल हूँ।
तू पास नहीं मेरे पर
तेरे जश्न-ओ-याद में मैं शामिल हूँ।।

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26 MAR AT 18:46

সন্ধা লেখে মন খারাপের গল্প
পাই তার সঙ্গ কত অল্প অল্প।
খুঁজে পাই না তার মনের তল
আবার কবে তারে দেখব বল?
সময়ের ডানা গজিয়ে যায়
আমাদের যখন দেখা হয়ে।
তবুও বাউল মন গায়ে শুধুই তার সুর
হৃদয়ের টান তার সাথে, থাকুক যতই দুর।।


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26 MAR AT 14:26

স্বাধীন নাই আর মন আমার
বাঁধা পড়িল তোমাকে জুড়ে।
এই খাঁচা খুলে দিলেও তুমি
যাবেনা এ পাখি কোথাও উড়ে।।

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22 MAR AT 16:25

अल्हड़ थी वो अलबेली थी
बेलगाम नदी की सहेली थी
जबसे हुई रूबरू एक शख्स से
अब लगने लगी वो एक पहेली थी
ना जाने क्यों सजने-सवरने लगी
वो जो कभी जंगलों सी रूपहली थी
सहेज लिया खुद को एक रूप में
इंद्रधनुष सी जो कभी फैली थी
रंग-रूप का ढंग आ गया उसे
काजल तक जो ना कभी पहने थी
क्या सीखा दिया प्रणय ने उसे
संजीदा हो गई बचपने से जो भरी थी।।

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21 MAR AT 17:45

लिखने की ना बात कर मुझसे
के मुझसे रहा ना जाएगा।
समंदर बसा हुआ जो मुझमें
तुझे बहा ले जाएगा।
बेलगाम ये लफ़्ज़ है मेरे
किसी पन्ने का मोहताज ना बन पाएगा।
जब एहसास नज़्म बनना चाहेंगे
लिखने को आस्मां भी छोटा पड़ जाएगा।

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