ख़ुद से ख़फ़ा है और बहुत है वो
ख़ुद से लड़ा भी तो बहुत है वो
आइना देखता है और हँसता है
कहता है कि झूठा बहुत है वो
मुँह पर हाथ रख कर ही चिल्लाता है
ख़ामोशी की परवाह करता बहुत है वो
उसका ग़म नया है या सिर्फ उसका है
है ज़माने में उससे और बहुत है वो
अपने ज़ख़्मों को बहाने बतलाता है
हाँ सुना मैंने कि सोचता बहुत है वो-
ek tu hi to h jo jajbat mere samjhta hai
ज़रा सी रौशनी भी दिखे तो सुबह मान लेता है
बड़ा नादान है हुक्मरानों का कहा मान लेता है
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सुकूँ भरे कुछ लम्हे
जिनकी महज अब
ख्वाबों में ही मिलने की गुंजाईश है।-
दिल टूटने की कुछ आवाज़ नहीं
इश्क़ में दर्द भला कोई राज नहीं
दिल की कहने से जो हिचका कोई
कल ही कल है फिर, कोई आज नहीं
राह-ए-आशिक़ी वो भी एक तरफ़ा
अजी घर-वापसी का कोई रिवाज़ नहीं
सब जान कर भी जब कोई दिल लगा बैठे
ना जी ना ऐसी हरकतों का कुछ इलाज़ नहीं-
गली के मुहाने पर
लगी है एक स्ट्रीट लाइट।
वो स्ट्रीट लाइट
रह रह कर बुझ रही है
जैसे कोई हँसता हुआ
अचानक से खामोश हो जाता है।
एक अवसाद से घिरा मन भी
उसी ख़राब स्ट्रीट-लाइट की भाँति होता है।-
कुछ नयी तस्वीरों के लिये
मैं वापस हँसना सीख रहा था।
अपनी पुरानी तस्वीरों को देख
उसमें अपनी हँसी पढ़ने की
कई नाकाम कोशिश कर रहा था।
तभी एक आवाज़ आयी
कि कोई मेरी मदद करना चाहता है।
ख़ैर इससे ज्यादा हँसने वाली बात
और क्या होती कि
मेरी ज़िन्दगी अब मुझे
मुस्कुराना सीखाना चाहती है-
लड़-झगड़ कर रोना,
धूल से नहाना।
एक खास ऊँगली थामे,
रास्ते पे चलना।
माँ के हाथ का खाना,
माँ के हाथ से खाना।
जो सुकून ' समर '
बचपन की छाँव में है,
कहीं और नहीं ।।-
इस दफ़े
खुदा से एक चीज मांगी है मैंने
कि अगले जनम जब मिले हम तुम
वो अपनी जलन को मजबूरी का नाम दे कर
हमें अलग करने की साजिश न करे
दुबारा।-
खुशियों की नीलामी चल रही थी बाजार में
मैंने एक प्याली चाय और सुबह खरीद ली-
मुहब्बत की दुनिया में उसने एक नया मक़ाम पाया है
रक़ीब के हाथों उसने इश्किया पैगाम भिजवाया है
सुना था कहीँ कि हर साँप ज़हरीला नहीं होता
'समर' ये मान कर के पानी में उतर आया है-