तुम पूछते तो नहीं हो अब. . .
फिर भी बता देता हूं, दिन की सभी बातें तुमको ।
किसने क्या कहा, किससे मिला, कौन अचानक टकरा गया,
और वो जो सड़क पर ऐसे ही, bus के इंतजार में देख लिया मैंने ।
ये सब समेट कर, अपनी जेब में भरता रहता हूं,
जैसे कुछ हिसाब देना है, हर दिन हर लम्हे का तुमको ।
पर, तुम पूछते नहीं अब ।
मैंने अकेला भी दो लोगों को तरह रहता हूं,
मुझे खाली घर में आना पसंद नहीं, ना घर खाली छोड़ कर जाना,
फिर भी सबसे ऐसे रुखसत होता हूं,
जैसे नाराज़ हो जाओगी तुम, जो मैं वक्त से वापस नहीं लौटा ।
रास्ते में देर होने के बहाने भी सोचता हूं, तुमसे डांट भी खा लिया करता हूं ।
हम में जब मैं अकेला होता हूं, तब भी तुम ही अच्छी और सही होती हो,
और भी है कुछ कुछ ऐसा ही बताने लायक,
पर तुम पूछते ही नहीं हो अब . . . ।।
-