अनिल वास्तविक   (Anill Vastavick)
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"भीड़ तो बेशुमार रहती थी मेरी भी महफिलों में, फिर मैं सच बोलने लगा और लोग उठते चले गए!"
Joined 20 April 2021


"भीड़ तो बेशुमार रहती थी मेरी भी महफिलों में, फिर मैं सच बोलने लगा और लोग उठते चले गए!"
Joined 20 April 2021

वो लोग अपनी मंजिलों पर कभी नहीं पहुँच पाते, जो अपने सफ़र के रास्ते से ज्यादा दूसरों की गलतियों पर नज़र रखते हैं!

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"Change often hurts, but time has no other way to get you out of your comfort zone."

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हँसते मुस्कुराते और तन्हाई से मुलाकातें करते हैं!
हम जब तन्हा होते हैं, तो खुद से ही बातें करते हैं!!

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ज़िद है कि मंजिलों को कदमों में झुकाऊंँगा,
वादा है कभी किसी बेबस को ना सताऊंँगा !
उम्मीदों के सहारे बैठना पसंद नहीं हैं मुझको,
अपनी मेहनत से ही अपनी तक़दीर बनाऊंँगा !!

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हर तकलीफ की दवा बनना होगा!
जो साँसें दे सके वो हवा बनना होगा!!
यहाँ कोई भी रहनुमा नहीं हैं तुम्हारा,
तुम्हे खुद ही अपना खुदा बनना होगा!!

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ना चाहत, ना नफरत,
ना कोई वफा़ लिखता हूँ!
जिन्दगी जो़ मुझे दे रही है,
मैं वो तजु़र्बा लिखता हूँ!!

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ज़िन्दगी जीने का भी एक नियम रखो!
गर कमाई कम है, तो खर्चे भी कम रखो!!
मंहगे शौक रखना बेशक गलत नही हैं मगर,
उसके लिए कडी़ मेहनत करने का दम रखो!!

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Ummeedon ke
sahaare rahna
pasand nahi
hai mujhe,
Apni mehnat
se hi mai apna
ashiyaana
banaunga!

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सुबह उठते ही भागते हैं, देर रात के थके हुए लोग,
ऐसे ही जिन्दगी काटते हैं, पगार पर बिके हुए लोग!!
खूब उडा़ते हैं मौज दलाली और मक्कारी करने वाले,
मुश्किलों से जूझते हैं वफा़दारी पर टिके हुए लोग!!

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सुबह उठते ही भागते हैं,
देर रात के थके हुए लोग,

ऐसे ही जिन्दगी काटते हैं,
पगार पर बिके हुए लोग!!

खूब उडा़ते हैं मौज दलाली
और मक्कारी करने वाले,

मुश्किलों से जूझते हैं बस,
वफादारी पर टिके हुए लोग!!

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