222-212-122
वो बस खबरों पे हैराँ होंगे
चुप हूं कि वो परेशाँ होंगे।
बातें खंजर अगर हैं तो फिर
सीने में जख्म जी हाँ होंगे।
इस पल को हम चलें जी लें जी
कल यूँ हम भी तो वीराँ होंगे।
जैसे उसने जिया है मर कर
आँखों से छलके पैमाँ होंगे।
दिल है दर्दे बयाँ में खुश क्यूँ
झाँके किसके गरेबाँ होंगे।
उखड़ी साँसे 'अनिल' की होंगी
तारीखों के पन्ने इरफाँ होंगे।-
बैठी भावों की हर डाली,
मुझे लुभाती, दौड़ाती
चंचल यह मतवाली,
छूना चाहूं, न छू पाऊ... read more
'अनिल' ये तेरा मन
है सुंदर आइना
इसमें रख मूरत जग की
अपनी तरह।
( गज़ल अनुशीर्षक में )-
आंखों में पानी है तो अच्छा है
प्रेम की पाती है तो अच्छा है।
जिंदगी में सुख-दुख में घर-बाहर
साथ कोई साथी है तो अच्छा है।
यादों में भी वह याद नहीं आता
अगर ये खुद्दारी है तो अच्छा है।
हर बार टूटा जब भी लूटा दिल
न बदला जज़्बाती है तो अच्छा है।
वह बिछड़ा फिर भी सांसें लेता हूं
जीना ही बीमारी है तो अच्छा है।
नींद में भी नींद क्यों नहीं आती
इश्क इक लाचारी है तो अच्छा है।
जल कर जगमग करना हर कोना
यह जिम्मेदारी है तो अच्छा है।
आंखें देखती जाती हैं आसमान
सफ़र की तैयारी है तो अच्छा है।
ग़म है 'अनिल' अपनी ही कमियों का
दुनिया चतुर सारी है तो अच्छा है।-
इंद्रधनुषी रंगों में
प्रीति का हर्ष है,
होली के त्यौहार में
भीगा भारतवर्ष है!
हृदय के सागर में
उल्लास की उच्छल तरंग,
कंठ में फाग है
टोली में ठंडई-भंग।
बाल वृद्ध युवक एक
वर्ण वर्ग धर्म एक
एक वर्तमान में
मानव का उत्कर्ष है।
आप सभी स्वजनों, प्रियजनों, मित्रों को प्रेम के पिचकारी की फुहार की स्नेह भरी होली की बधाई🙏🌹🌺🌺🌺🌺🌹🙏-
यह दुनिया है वाहवाही की दुनिया
दुनिया ये है देखी रंग बदलते हुए।
( ग़ज़ल अनुशीर्षक में )-
ये गुस्ताख़ी है या 'अनिल'
कोई साज़िश आंखों की
उन झुकी पलकों में अक्सर
मयख़ाने देखा करते हैं।
( गज़ल अनुशीर्षक में )-
संदेश
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वह मेरे प्रिय हैं
जो देश की सरहदें भी लांघ आते हैं
मुझसे मिलने के लिए।
( कविता अनुशीर्षक में )-
सुकूँ की नींद की रात तो कभी आए
सुकूँ की हल्की ही आस तो कभी आए।
क्यूं आये इतना वो मेरी यादो॔ में
मुलाकातों की हालात तो कभी आए।
ये है जो ज़िंदगी कैसी खेलती है
इसे शतरंज में मात तो कभी आए।
ये मेरा यार क्यूं बावला सा है
ज़बां पर राज की बात तो कभी आए।
नये इस दौर का है ज़ुदा रंग कुछ
जमीं पर पैर हों चाल तो कभी आए।
हैं फुटपाथों से ज़िंदा नंगे-भूखे
जिसे भी हो सरोकार तो कभी आए।
है जाती जान झूठे से वादों पर
हो अपनी ही जो सरकार तो कभी आए।-