Anil Singh  
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Joined 24 June 2021


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11 HOURS AGO

नाचे ज़माना ज़िंदगी की धुन पर
स्वागत में ताने और सीटियां हैं।



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2 JUL AT 6:10

जीने का सुख इस पार 'अनिल'
उस पार भी सुख की नींद,
फिर क्यूँ अनहोनी की
आशंकाओं से डर लगता है।

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28 JUN AT 5:44

ए ज़िंदगी, तुझसे निभाना क्या
आखिर तिरे नखरे उठाना क्या।

आँसू जो झरा आँखों से ज़ुदा
तेरा परिचय और बताना क्या।

मीठी सी छुरी मिसरी की ज़बां
समझा तुझे है ये ज़माना क्या।

घुट घुट मरे महफ़िल में दिलजले
तेरा भी ये महफ़िल लगाना क्या।

आंखें जो खुली और हुए फ़ना
पलकों पे वो सपने बिठाना क्या।

बढ़ते हैं कदम छोड़ते निशाँ
तेरी कहाँ मंज़िल ठिकाना क्या।

पागल वो खड़ा बीच रास्ते
फिर उससे गुज़र आना-जाना क्या। ...Anil Singh






















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24 JUN AT 7:06

जादू है ख़्वाबों में
आखिर तो कुछ,
करवटों में रात
आई गई।

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16 JUN AT 5:52

मुस्कुरा कर जी तो कोई ज़िंदगी
जी भी तो क्या जी रो कोई ज़िंदगी।

बस बड़ा तन हो गया लेकिन न मन
कहते ना हैं इसको कोई ज़िंदगी।

घूमे जो चढ़ कर पिताजी के कंधे
यूँ लगा जैसे हो कोई ज़िंदगी।

दुख है आख़िर क्या किसे क्या ये ख़बर
साये बाबूजी के सो कोई ज़िंदगी।

पेड़ की डाली के पत्ते फूल फल
सर उचक पाये वो कोई ज़िंदगी।

बस्ता भारी पीठ पर स्कूल का
ढ़ोते पापा जी वो जो कोई ज़िंदगी।

दोपहर छत धूप अंधेरा रात घर
दिन फसल खेतों में बो कोई ज़िंदगी।

देश पर जो मिट जिए हैं ज़िंदगी
हो अमर मृत्यु तो वो कोई ज़िंदगी।

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7 JUN AT 5:28

हैं कुछ रहे यूं निभा जिंदगी के साथ
रो मुस्कुरा रहे दरियादिली के साथ।

है पग तले जमीं और सर पे आसमान
हैं घूमते जहाँ आवारगी के साथ।

ये सोचते हैं कि फुर्सत के होते दिन
पलों को जीते कि जिंदादिली के साथ।

जो दिल से खेल के दिल का हुआ मिरे
जला रहा मुझे वो दिल लगी के साथ।

यहां वहां किसे मैं ढ़ूढ़ता फिरा
रहा वो साथ मिरे बंदगी के साथ।

जरा ऐंठा सा ये शहर किस गुमाँ पे
था गाँव प्यारा मिरा सादगी के साथ।

'अनिल' मुकाम पे चल के जो आ गया
जहान छोड़ा चला जिंदगी के साथ।

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29 MAY AT 6:08

हर हिचकी पर सोचूँ कौन अपना जिसको भूला हूं
किसके आशीष की बारिश में सुख से इतना गिला हूं।



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28 MAY AT 6:32

कितनी सारी बातों के आँसू , कितने सारे दर्द
ए जिंदगी, कितनी रखी तूने यादें संभाल के।



....Anil Singh







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25 MAY AT 5:00

ऐसे वो हमें सताता है
ख्वाब नींद में दिखाता है।

करता इस तरह कोई नहीं
जिस तरह वो मन जलाता है।

उससे करनी कितनी बातें हैं
नजरें भी न वो मिलाता है।

गैर दिल भी अब हुआ मिरा
नखरे और के उठाता है।

गीली धरती है सुबह क्यूँ ये
चाँद अश्क क्यूँ बहाता है।

कितने तूफाँ गुजरे हैं यहाँ
वो वहाँ जो मुस्कुराता है।

जीने का यूँ ख्याल अच्छा है
जीते जी जी कौन पाता है।

सब 'अनिल' वो कौन है तिरा
तुझसे ही तुझे चुराता है।

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19 MAY AT 5:33

222-212-122

वो बस खबरों पे हैराँ होंगे
चुप हूं कि वो परेशाँ होंगे।

बातें  खंजर अगर हैं तो फिर
सीने में जख्म जी हाँ होंगे।

इस पल को हम चलें जी लें जी
कल यूँ हम भी तो वीराँ होंगे।

जैसे उसने जिया है मर कर
आँखों से छलके पैमाँ होंगे।

दिल है दर्दे बयाँ में खुश क्यूँ
झाँके किसके गरेबाँ होंगे।

उखड़ी साँसे 'अनिल' की होंगी
तारीखों के पन्ने इरफाँ होंगे।

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