जब मैं ढूंढ रहा था प्रेम के मायने,
तब तुम थी,
जब मैं भटक रहा था राह ए ज़िंदगी में,
मेरा हाथ थाम के खड़ी,
तुम थी...
मेरे हर सफ़र के साथ,
हमेशा, तुम थी,
तुम हो,
और तुम ही रहोगी।-
यहाँ प्यादा भी नहीं, वहां सरकार हूँ मैं...
मेरी कविताओं में, आज भी बंद है,
वो अनकहे, अनगिनत, अल्फ़ाज़,
काश कि मैं, इज़हार कर लेता...
काश कि थोड़ा, प्यार कर लेता...— % &-
मुझे मालूम है शराब की हक़ीक़त,
फिर भी पीने को मजबूर हूं,
अब वही लोग कहते हैं मुहब्बत में हूं मैं,
जिनकी नजर में, मैं बेवफाई के लिए मशहूर हूं....— % &-
इस मौसम में मेरी सांसें, कहां बाज आती है....
मैं मोहब्बत पुकारता हूं,
और तुम्हारी आवाज़ आती है...-
कुछ घटा, कुछ मेह, कुछ मलंग, कुछ मोर,
बस यही दस्तूर बचा है ज़िंदगी का,
कभी इस छोर, कभी उस छोर...-
औरों से अलग है मेरी गणित,
मेरी गणित में शून्य से पहले तुम आती हो...-
उस बेवफ़ा के इश्क की, हद ढूंढ़ रहा हूं,
मैं पागल हूं,
शक्कर में शहद ढूंढ़ रहा हूं...-
कुछ यूं मेरी ख्वाहिशें टूट कर रो दी,
मैंने मसाफ़त के जुनून में मंज़िल खो दी...-
माना कि शाम, अंधेरे का पैगाम लाएगी,
आज अमावस की रात ही सही,
मगर दीये से रोशनी तो आएगी...-
तुम्हारा रुसवाई का पैग़ाम,
आखिर में, अमल तो हुआ,
देर से ही सही,
तुम्हारा ख़्वाब, मुकम्मल तो हुआ...-