Anil Mishra  
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किसी एक चेहरे पे नज़र जम गई
वक़्त की घड़ी लगा जैसे थम गई
Joined 6 August 2020


किसी एक चेहरे पे नज़र जम गई
वक़्त की घड़ी लगा जैसे थम गई
Joined 6 August 2020
28 FEB 2022 AT 21:37

अपनी दुनिया दिल के भीतर
बाहर आने पाये ना
बाहर नमक के सौदागर हैं
ज़ख्म कोई भी दिखाए ना

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28 FEB 2022 AT 16:04

दहलीज़ कब तलक मेरा तेरे संग ठिकाना है
लम्हे सब गुजर रहे फिर भी उनको आना है

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28 FEB 2022 AT 16:00

कुछ देर लगी यार मगर
पहचान हो गई
अफ़सोस रहा कि तू तो
मेरी जान हो गई

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28 FEB 2022 AT 15:55

विश्वास ने मेरे बहुत चोट खाई है
अपनों से तभी हमने दूरी बनाई है

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28 FEB 2022 AT 13:45

भरोसा हमें इस तन का नहीं
अभी चल रहा है अभी गिर पड़े
भरोसे की खातिर भला हम स्वयं से
कहाँ तक कैसे और कितना लड़ें

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28 FEB 2022 AT 10:02

दिल को जुबां पे लाने से कतराने लगे हैं लोग
जाने क्योंकर खुद ही खुद को समझाने लगे हैं लोग

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28 FEB 2022 AT 9:59

हादसों की ज़द में मैंने खुद को उस दिन छोड़ा था
जिस दिन मैंने इश्क़ की गलियों में रुख को मोड़ा था

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27 FEB 2022 AT 22:51

तेरी तन्हाईयाँ और मेरी तन्हाईयाँ
चल मिला कर बख्स दें इनको रुस्वाइयां

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27 FEB 2022 AT 22:49

कविता का तरल पदार्थ
दिल में उतर सा जाता है
और इसको लिखने वाला
कहीं बिखर सा जाता है

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27 FEB 2022 AT 22:44

अपनी हक़ीक़त अपना फ़साना
चलो अब किसी को हमें न सुनाना

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