अपनी दुनिया दिल के भीतर
बाहर आने पाये ना
बाहर नमक के सौदागर हैं
ज़ख्म कोई भी दिखाए ना-
किसी एक चेहरे पे नज़र जम गई
वक़्त की घड़ी लगा जैसे थम गई
अपनी दुनिया दिल के भीतर
बाहर आने पाये ना
बाहर नमक के सौदागर हैं
ज़ख्म कोई भी दिखाए ना-
दहलीज़ कब तलक मेरा तेरे संग ठिकाना है
लम्हे सब गुजर रहे फिर भी उनको आना है-
भरोसा हमें इस तन का नहीं
अभी चल रहा है अभी गिर पड़े
भरोसे की खातिर भला हम स्वयं से
कहाँ तक कैसे और कितना लड़ें-
दिल को जुबां पे लाने से कतराने लगे हैं लोग
जाने क्योंकर खुद ही खुद को समझाने लगे हैं लोग-
हादसों की ज़द में मैंने खुद को उस दिन छोड़ा था
जिस दिन मैंने इश्क़ की गलियों में रुख को मोड़ा था-
तेरी तन्हाईयाँ और मेरी तन्हाईयाँ
चल मिला कर बख्स दें इनको रुस्वाइयां-
कविता का तरल पदार्थ
दिल में उतर सा जाता है
और इसको लिखने वाला
कहीं बिखर सा जाता है-